पृष्ठ:मानसरोवर १.pdf/२४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२५५
सुभागी


भर खेतो-बारी का काम करने के बाद वह रात को चार-चार पसेरो आटा पोस हालतो। तीस दिन १५) लेकर वह सजनसिंह के पास पहुंच जाती। इसमें कमी नागा न पड़ता। यह मानों प्रकृति का अटल नियम था।

अब चारों ओर से उसको सगाई के पैगाम आने लगे। सभी उसके लिए मुँह कलाये हुए थे। जिसके घर सुभागी मायगी, उसके भाग्य फिर जायेंगे। सुभागी यही जवाब देती --- अभी बह दिन नहीं आया।

जिस दिन सुभागी ने आखिरी किस्त बुझाई, उस दिन उसको खुशी का ठिकाना न था। आज उसके जीवन का कठोर व्रत पूरा हो गया।

वह चलने लगी तो सजनसिंह ने कहा --- बेटी, तुमसे मेरो एक प्रार्थना है, कहो हूँ ; कहो न हूं , मगर बचन दो कि मानोगी।

सुभागी ने कृतज्ञभाव से देखकर कहा --- दादा, आपकी बात न मानूंगी तो किसकी यात मानूंगी। मेरा तो रोया-रोयाँ आपका गुलाम है।

सजन० --- अगर तुम्हारे मन में यह भाव है, तो मैं न उहूँगा। मैंने अब तक तुमसे इसीलिए नहीं कहा कि तुम अपने को मेरा देनदार समझ रही थी। अब रुपये वुक गये। मेरा तुम्हारे ऊपर कोई एहसान नहीं है, रत्ती भर भी नहीं। बोलो कहूँ ?

सुभागी --- आपकी जो आज्ञा हो।

सजन० --- देखो, इनकार न करना, नहीं मैं फिर तुम्हें अपना मुंह न दिखाऊँगा।

सुभागी --- क्या आज्ञा है ?

सजन० --- मेरी इच्छा है कि तुम मेरी बहू बनकर मेरे घर को पवित्र करो। मैं जात पात का कायल हूँ , मगर तुमने मेरे सारे बन्धन तोड़ दिये। मेरा लड़का तुम्हारे नाम का पुजारी है। तुमने उसे बारहा देखा है। बोलो, मजूर करतो हो ?

सुभागो --- दादा, इतना सम्मान पाकर पागल हो जाऊँगी।

सजन --- तुम्हारा सम्मान भगवान् कर रहे है बेटीतुम साक्षात् भगवती का अवतार हो।

सुभागी --- मैं तो आपको अपना पिता समझती हूँ। आप जो कुछ करेंगे, मेरे भले हो के लिए करेंगे। आपके हुक्म को कैसे इनकार कर सकती हूँ।

सजनसिंह ने उसके माथे पर हाथ रखकर कहा --- बेटी, तुम्हारा सोहाग अमर हो। तुमने मेरो बात रख लो। मुझ-सा भाग्यशाली ससार में और कौन होगा !