पृष्ठ:मानसरोवर १.pdf/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

३१
मानसरोवर


है। माँ-बाप, भाई बन्द सब पराये हैं जय भैया-जैसे आदमी का मिजाज बदल वाया, तो फिर दूसरों की क्या गिनती। दो लड़के भगवान के दिये हैं. और क्या चाहिए। बिना ब्याह किये दो बेटे सिल गये, इससे बढ़कर और क्या होगा। जिसे अपना समझो, वह अपना है, जिसे र समझो, वह गैर है।

एक दिन पन्ना ने कहा-तेरा वंश कैसे चलेगा ? केदार -मेरा वश तो चल रहा है। दोनों लड़कों को अपना ही समझता हूँ। पन्ना-समझने ही पर है, तो तू मुलिया को भी अपनी मेहरिया समझता होगा।

केदार ने झेपते हुए कहा---तुम तो गाली देती हो अम्माँ !

पन्ना---पाली कैसी, तेरी भाभी ही तो है।

केदार मेरे-जैसे लट्ठ - गँवार को वह क्यों पूछने लगी।

पन्ना---तू चरने को कह, तो मै उससे पूछू कैदार नही मेरी अम्माँ, कहा रोने-गाने न लगे। पन्ना-तेरा सन हो, तो मैं बात-बातों मैं उसके मन की थाह लू है।

केदार---मैं नहीं जानता, जो चाहे कर।

पन्ना केदार के मन की बात समझ गईं। लड़के का दिल मुलिया पर आया हुआ है, पर सोच और भय के सारे कुछ नहीं कहता।

उसी दिन उसने मुलिया से कहा---क्या करूं वह सल की लालसा मन में ही रही जाती है। केदार का घर भी इसे जाता, तो मैं निश्चिन्त हो जाती।

मुलिया--- वह तो करने ही नहीं कहते।

पन्ना---कहता है ऐसी औरत मिले, जो घर में मेल से रहे, तो कर लें।

मुलिया--- ऐसी औरत कहाँ मिलेगी ? कहीं हूँ हो।

पन्ना---मैने तो ढूंढ लिया है।

मुलिया सच ! किस गाँव की है ?

पन्ना--- अभी न बताऊँगी, मुदा यह जानती हूँ कि उससे केदार की सगाई हो जाय, तो घर बन जाय और केदार की ज़िन्दगी भी सुफल हो जाय। न जाने लड़की मानेगी कि नहीं।

मुलिया---मानेगी क्यों नहीं अम्माँ, ऐसा सुन्दर, कमाऊ, सुशील वर और