पृष्ठ:मानसरोवर १.pdf/२५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२६२
मानसरोवर


आधी उम्र बीत गई और मात करना न आया। (पति से) बड़े सोच क्या रहे हो ? तुम्हें डर लगता हो, तो मैं जाकर कह पाऊँ ?

ज्ञान बाबू ने खिसियाकर कहा --- तो कल कह दंगा, : इस वक्त कहाँ होगा, कौन जाने।

रात-भर मुझे नींद नहीं आई। बाप और ससुर जिसका मुंह नहीं देखना चाहते, उसका यह आदर ! राह की भिखारिन का यह सम्मान ! देवी, तू सचमुच देवी है।

दृसरे दिन ज्ञान बाबू चले, तो देवी ने फिर, कहा-फैसला करके घर आना। यह न हो कि फिर सोचकर जवाब देने को प्ररूरत पड़े।

ज्ञान बाबू के चले जाने के बाद मैंने कहा-तुम मेरे साथ बड़ा अन्याय कर रहो हो बहनजी । मैं यह कभी नहीं देख सकती कि मेरे कारण तुम्हें यह विपत्ति झेलनी पड़े।

देवी ने हास्य-भाव से कहा --- कह चुकी या कुछ और कहना है ?

'कह चुकी ; मगर अभी बहुत कुछ कहूंगी।'

'अच्छा, बता, तेरे प्रियतम क्यों जेल गये ? इसीलिए तो कि स्वयसेवकों का सत्कार किया था ? स्वयंसेवक कौन है। यह हमारी सेना के घोर हैं, जो हमारी कड़ाइयां ला रहे हैं। स्वयंसेवकों के भी तो बाल-बच्चे होंगे, मां-बाप होंगे, वह भी तो कोई कार-बार करते होंगे ; पर देश की लड़ाई लड़ने के लिए, उन्होंने सब कुछ त्याग दिया है। ऐसे वीरों का सत्कार करने के लिए जो आदमी जेल में बाल दिया जाय, उसकी स्त्री के दर्शनों से भी भात्मा पवित्र होती है। मैं तुझ पर एहसान नहीं कर रही हूँ, तु मुझ पर एहसान कर रही है।

मैं इस दया-सागर में डुबकियां खाने लगी। बोलती क्या।

शाम को अब शान शबू लौटे, तो उनके मुख पर विषय का मानन्द था ।

देवो ने पूछा --- हार कि जीत ?

ज्ञान बाबू ने अकड़कर कहा --- बीत ! मैंने इस्तीफा दे दिया, तो चक्कर में आ गया। उसी वक हाकिम-जिला के पास गया। वहां न जाने मोटर पर बैठकर दोनों में क्या बातें हुई। लौटकर मुझसे बोला --- आप पोलिटिकल जलसों में तो नहीं जाते ?

मैंने कहा --- कभी भूलकर भी नहीं।

'कांग्रेस के मेम्बर तो नहीं है?'