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लांछन

अगर संसार में ऐसा प्राणी होता, जिसकी भाखें लोगों के हृदयों के भीतर घुसः सकती, तो ऐसे बहुत कम स्त्री या पुरुष होंगे, जो उसके सामने सीधी आँखें करके ताक सकते। महिला-आश्रम की जुगनूगई के विषय में लोगों को धारणा कुछ ऐसी हो हो गई थी। वह बेपढ़ी-लिखी, गरीब, बूढ़ी औरत थी ; देखने में बड़ी सरल, बड़ी हँसमुख , लेकिन जैसे किसी चतुर रीडर की निगाह गलतियों ही पर जा' पड़ती है, उसी तरह उसकी आँखें भी बुराइयों हो पर पहुँच जातो थों। शहर में ऐसी कोई महिना न थी, जिसके विषय में दो-चार लुकी-छिपी बात उसे न मालूम हो। उसका ठिंगना स्थूल शरीर, सिर के खिचड़ी बाल, गोल मुंह, इले-फूले गाल, छोटी-छोटी आँखें उसके स्वभाव को प्रखरता और तेली पर परदा-सा डाले रहती थी। लेकिन जब वह किसी के कुत्सा करने लगती, तो उसकी आकृति कठोर हो जाती, आंखें फैल जाती और कण्ठ-स्वर कर्कश हो जाता। उसको चाल में बिल्लियों का- सा संयम था, दबे पांव धीरे-धीरे चलती; पर शिकार की आहट पाते हो, जस्त मारने को तैयार हो जाती थी। उसका काम था, माहिला-आश्रम में महिलाओं की सेवा-टहल करना ; पर महिलाएं उम्रकी सूरत से कांपती थीं। उसका ऐसा आतंक था, कि ज्योंही वह कमरे में कदम रखतो, ओठों पर खेलती हुई इसी जैसे रो पड़तो थी। चहकनेवाली आवाजें, जैसे बुझ जाती थीं, मानों उनके मुख पर लोगों को अपने पिछले रहस्य अंकित नजर आते हो। पिछले रहस्य ! कौन है, जो अपने अतीत को किसी भयंकर जन्तु के सामने कठघरों में बन्द करके न रखना चाहता हो। धनियों को चोरों के भय से निद्रा नहीं पाती। मानियों को उसी भांति मान की रक्षा करनी पड़ती है। वह अतु, जो पहले कीट के समान अल्पाकार रहा होगा, दिनों के साथ दीर्घ और सबल होता है, यहाँ तक कि हम उसको याद ही से काँप उठते हैं। और अपने ही कारनामों की बात होती, तो अधिकांश देवियाँ जुगनू को दुत्कारती। पर यहाँ तो मैके और ससुराल, नन्हियाल और ददियाल, फुफियाल और मौसिवान, चारों ओर की रक्षा करनी थी भौर जिस किले में इतने द्वार हो, उसकी रक्षा कौम कर