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मानसरोवर


देखकर कुछ मिसकता था; पर तुम्हारी मिस साहब तो जैसे मतवाली हो गई थी।

खानसामा ने मानों अमगल के आभास से कहा --- मुझे तो कुछ बेढब मुआमला नजर आता है।

जुगनू तो यहां से सीधे मिसेज टंडन के घर पहुंची। इधर मिस खुरशेद और युवक में बातें होने लगी।

मिस खुरशेद ने कहकहा मारकर कहा --- तुमने अपना पार्ट खूब खेला लोळा, बुढ़िया सचमुच चौंधिया गई।

लोला --- मैं तो कर रही थी कि कहीं बुढ़िया माप न जाय।

मि० खुरशेद --- मुझे विश्वास था, वह आज हर भायेगी। मैंने दर हो से उसे बरामदे में देखा और तुम्हें सूचना दी। आज आश्रम में बड़े मन्ने रहेंगे। जो चाहता है, महिलाओं की कनफुसकियां सुनती। देख लेना, सभी उसकी बातों पर विश्वास करेंगे।

लीला --- तुम भो तो जान बूझकर दलदल में पाँव रख रही हो।

मिस खुरशेद --- मुझे अभिनय में मजा आता है बहन ! दिलगो रहेगी। बुढ़िया ने बड़ा जुल्म कर रखा है। जरा उसे सबक देना चाहती हूँ। कल तुम इसो वक इसी ठाट से फिर आ जान। बुढ़िया कल फिर आयेगी। उसके पेट में पानी न हजम होगा। नहीं, ऐसा क्यों। जिस वक्त वह आयेगी, मैं तुम्हें खार दूंगी। बस, 'तुम छैला बनी हुई पहुँच जाना।

( ५ )

आश्रम में उस दिन जुगनू को दम मारने की फुर्सत न मिली। उसने सारा वृत्तान्त मिसेज टंडन से कहा । मिसेज टंडन दौड़ी हुई आश्रम में पहुँची और अन्य महिलाओं को खबर सुनाई। जुगनू उसकी तस्दीक करने के लिए बुलाई गई । नो महिला माती, वह जुगनू के मुँह से यह कथा सुनती। हर एक रिहर्सल में कुछ-कुछ रंग भौर चढ़ जाता। यहाँ तक कि दोपहर होते-होते सारे शहर के सभ्य-समाज में यह खबर गूंज उठी।

एक देवी ने पूछा -- युवक है कौन ?

मि० टंडन --- सुना तो, उनके साथ का पढ़ा हुआ है। दोनों में पहले से कुछ बातचीत रही होगी। वही तो मैं कहती थी कि इतनी उम्र हो गई, यह क्वारी कैसे बैठी हैं? अब कलई खुली।