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अलग्योझा


कहाँ मिला जाता है। उस जनम का कोई साधु-महात्मा है, नहीं तो लड़ाई-झगड़े के डर से कौन बिन ब्याहा रहता है। कहाँ रहती है, मैं जाकर उसे मना लाऊ।

पन्ना तू चाहे, तो उसे मना ले। तेरे ही ऊपर है।

मुलिया--- मैं आज ही चली जाऊगी अम्माँ ! उसके पैरों पढ़कर मना लाऊँगी।

पन्ना बता दूँ ! वह तू ही है।

मुलिया लजाकर बोली --- तुम तो अम्माँजी, गाली देती हो।

पन्ना--- गाली केसी, देवर ही तो है।

मुलिया---- मुझ-जैसी बुढ़िया को वह क्यों पूछेगे।

पन्ना---वह तुझो पर दाँत लगाये बैठा है। तेरे सिवा कोई और उसे भाती हो नहीं। डर के मारे कहता नहीं ; पर उसके मन की बात मैं जानती हैं।

वैधव्य के शोक से मुरझाया हुआ मुलिया का पीत वदन कमल की भाँति अरुण हो उठा। दस वर्षों में जो कुछ खोया था, वह इसी एक क्षण में सोनों ब्याई के साथ, मिल गया। वही लावण्य, वही विकास, वही आकर्षण, वही लोच !