पृष्ठ:मानसरोवर १.pdf/२६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२७१
लांछन

जुगनू --- और कुछ हो या न हो, जवान तो बांका है।

टंडन --- यह हमारी विद्वान् बहनों का हाल है।

जुगनू --- मैं तो उसकी सूरत देखते ही ताड़ गई थी। धूप में बाल नहीं सुफेद किये हैं।

टंडन --- कल फिर जाना ।

जुगनू --- कल नहीं, मैं आज रात हो को जाऊँगी । लेकिन रात को जाने के लिए कोई बहाना जरूरी था। मिसेज़ टडन ने आश्रम के लिए एक किताब मैंगवा मेली। रात को नौ बजे जुगनू मि० खुरशेद के बंगले पर जा पहुँची। सयोग से लोलावती उस वक्त मौजूद थी। बोली --- तो चेतरह पीछे पड़ गई।

मि० खुरशेद --- मैंने तो तुमसे कहा था, उसके पेट में पानी न पचेगा। तुम आकर रूप भर आओ। तब तक इसे मैं बातों में लगातो हूँ। शराबियों की तरह अट-सट बकना शुरू करना। मुझे भगा ले जाने का प्रस्ताव भी करना । बस यो बन माना, जैसे अपने होश में नहीं हो।

लीला मिशन में डाक्टर थी। उसका बंगला भी पस हो था। वह चली गई तो मि. खुएशेद ने जुगनू को बुलाया।

जुगनू ने एक पुरजा उनको देकर कहा ---;मिसेज टंडन ने यह किताब मांगी है। मुझे आने में देर हो गई। मैं इस वक्त आपको कर न देतो; पर सबेरे हो वह मुझसे मांगेंगी। हजारों रुपये महीने की आमदनी है मिस साहक मगर एक एक कौड़ी दाँत से पकड़ती है। इनके द्वार पर भिखारी को भाख तक नहीं मिलती।

मि० खुरशेद ने पुरजा देखकर कहा-इस बक तो यह किताब नहीं मिल सकती, सुबह ले जाना । तुमसे कुछ बातें करनी हैं। बैठो, मैं अभी आती हूँ।

वह परदा उठाकर पीछे के कमरे में चली गई और वहां से कोई पन्द्रह मिनट में- एक सुन्दर रेशमी साड़ी पहने, स्त्र में पसी हुई, मुँह पर पाउडर लाये निकली। जुगन ने उन्हें आँखें फाड़कर देखा । ओ हो! यह शृङ्गार! शायद इस समय वह लौंडा आनेवाला होगा। तभी यह तैयारियां हैं। नहीं, सोने के समय क्वारियों के बनाव-संवार की क्या जरूरत ? जुगनू की नोति में त्रियों के शृङ्गार का केवल एक उद्देश्य था, पति को लुभाना। इसलिए सोहागिनों के सिवा हार और सभी के लिए वजित था। भभी खुरशेद कुरसी पर बैठने भो न पाई थी कि जूतों का चामर सुनाई