पृष्ठ:मानसरोवर १.pdf/२७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२८५
तावान

स्त्री ने सुना, तो कानों पर हाथ रखकर बोली-मैं मुहर तोड़ने को कभी न कहूंगी। डाक्टर तो कुछ अमृत पिला न देगा। तुम नक्कू क्यों बनो। बचना होगा, बच जाऊँगो, मरना होगा, मर जाऊँगी, बेआबरुई तो न होगी । मैं जीकर ही घर का क्या उपकार रह रहो हूँ। और सबको दिक्क कर रही हूँ। देश को स्वराज्य मिळे, लोग सुखी हो, बला से मैं मर जाऊँगी। हजारों आदमी जेल जा रहे हैं, कितने घर तवाह हो गये, तो क्या सबसे ज्यादा प्यारी मेरी हो जान है ?

पर छकौड़ी इतना पक्का न था। अपना वश चलते वह स्त्री को भाग्य के भरोसे न छोड़ सकता था। उसने चुपके से मुहर तोद डालो और लागत के दामों दस रुपये के कपड़े बेच लिये।

अब डाक्टर को कैसे ले जाय । स्त्री से क्या परदा रखता। उसने जाकर साफ- साफ सारा वृत्तान्त कह सुनाया और डाक्टर को बुलाने चला।

स्त्री ने उसका हाथ पकड़कर कहा --- मुझे डाक्टर की ज़रूरत नहीं, अगर तुमने ज़िद की, तो मैं दवा की तरफ आँख भी न उठाऊँगी।

छकौड़ी और उसकी माँ ने रोगिणो को बहुत समझाया ; पर वह डाक्टर को बुलाने पर राजी न हुई। छकौड़ी ने दसौ रुपये उठाकर घर-कुइयां में फेंक दिये और बिना कुछ खाये पोये, क्रिस्मत को रोता-कता दुकान पर चला आया। उसी वक्त पिकेट करनेवाले था पहुँचे और उसे फटकारना शुरू कर दिया । पमोस के दूकानदार ने कांग्रेस-कमेटी में जाकर चुगली खाई थी।

( २ )

छकौड़ी ने महिला के लिए अन्दर से लोहे को एक टूटी, बेरग कुरसी निकाली और लपककर उनके लिए पान लाया। जब वह पान खाकर कुरसी पर बैठो, तो हमने अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी। बोला --- बहनजी, बेशक मुझसे यह अपराध हुआ है , लेकिन मैंने मजबूर होकर मुहर तोड़ी। अबकी मुझे मुआफो दीजिए। फिर ऐसी खता न होगी।

देशसेविका ने थानेदारों के शेष के साथ कहा --- यो अपराध क्षमा नहीं हो सकता। तुम्हें इसका तावान देना पड़ेगा। तुमने काग्रेस के साथ विश्वासघात किया है और इसका तुम्हे दण्ड मिलेगा। आज हो बायकाट-कमेटी में यह मामला पेश होगा।

छकौड़ी बहुत ही विनीत, बहुत हो सहिष्णु था ; लेकिन चिंताग्नि में तपकर