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मानसरोवर


दो दिन से चूल्हा नहीं जला। घर की जो जमा-जमा थी, वह सब बेचकर खा गया। भब आपने तावान लगा दिया, दूकान बन्द करनी पड़ी। घर पर कुछ मान बेचने लगा। वहाँ स्यापा बैठ गया। अगर आपकी यही इच्छा हो कि हम सब दाने बगैर मर जाय, तो मार डालिए, और मुझे कुछ नहीं कहना है।'

छकौड़ी जो बात कहने घर से चला था, वह उसके मुँह से न निकली। उसने देख लिया कि यहां कोई उस पर विचार करनेवाला नहीं है।

प्रधानजो ने गम्भीर-भाव से कहा --- तावान तो देना ही पड़ेगा। अगर तुम्हें छोड़ दें, तो इसी तरह और लोग भी करेंगे। फिर विलायती कपड़े की रोक-थाम कैसे होगी?

'मैं आपसे जो कह रहा हूँ, उस पर आपको विश्वास नहीं आता।'

'मैं जानता हूँ, तुम मालदार आदमी हो।'

'मेरे घर की तलाशी ले लीजिए।'

'मैं इन चकमों में नहीं आता।'

छकौड़ी ने उद्दण्ड होकर कहा --- तो यह कहिए कि आप देश-सेवा नहीं कर रहे हैं, गरीबों का खून चूस रहे हैं । पुलीसवाले कानूनी पहल से लेते हैं, आप गैरकानूनी से लेते हैं। नतीजा एक है । आप भी अपमान करते हैं, वह भी अपमान करते कसम खा रहा हूँ कि मेरे घर में खाने के लिए दाना नहीं है, मेरी स्त्री खाट पर पड़ी-पड़ी मर रही है। फिर भी आपको विश्वास नहीं आता। आप मुझे कांग्रेस का काम करने के लिए नौकर रख लीजिए । २५) महोने दीजिएगा। इससे ज्यादा अपनी रोगी का और क्या प्रमाण हँ। अपर मेरा काम संतोष के लायक न हो, तो एक महीने के बाद मुझे निकाल दीजिएगा। यह समझ लीजिए कि जब मैं आपको गुलामी करने को तैयार हुआ हूँ, तो इसी लिए कि मुझे दुसरा कोई आधार नहीं है । इम व्यापारी लोग, अपना बस चलते, किसी की चाकरी नहीं करते। जमाना बिगड़ा हुआ है, नहीं १० ) के लिए इतना हाथ-पाव न जोड़ता।

प्रधानजी हँसकर बोले --- यह तो तुमने नई चाल चली।

'चाल नहीं चल रहा हूँ, अपनी विपत्ति-कथा कह रहा हूँ।'

'कांग्रेस के पास इतने रुपये नहीं है वह मोटों को खिलाती फिरे ।' 'अब भी आप मुझे मोटा हो कहे जायेंगे।'