शान्त करने की चेष्टा करते हुए कहा-इस तरह चलना उचित नहीं है अम्बे ! मैं
एक बार प्रधानजी से फिर मिलूंगा । अब रात हुई, स्यापा भी पन्द हो जायगा । कल
देखी जायगी । अभी तो तुमने पथ्य भी नहीं लिया। प्रधानजी बेचारे बड़े असमजस
में पड़े हुए है। कहते हैं, अगर आपके साथ रिआयत करूं, तो फिर कोई शासन
ही न रह जायगा। मोटे-मोटे आदमी भो मुहरें तोड़ डालेंगे और जब कुछ कहा
जायगा, तो आपकी नजीर पेश कर देंगे।
अम्बा एक क्षण अनिश्चित दशा में खड़ी छौड़ी का मुंह देखती रही, फिर धीरे से खाट पर बैठ गई । उसको उत्तेजना गहरे विचार में लीन हो गई। काग्रेस की और अपनी जिम्मेदारी का खयाल आ गया। प्रधानजी के कथन में कितना सत्य था, यह उससे छिपा न रहा।
उसने छौड़ी से कहा- तुमने आकर यह बात न कही थी।
छकौड़ी बोला-उस वक मुझे इसकी याद न थी।
'यह प्रधानजी ने कहा है, या तुम अपनी तरफ से मिला रहे हो?'
'नहीं, उन्होंने खुद कहा, मैं अपनी तरफ से क्यों मिलाता ?' 'बात तो उन्होंने ठीक हो कही ।'
'हम तो मिट जायेंगे।'
'हम तो यो ही मिटे हुए हैं।'
'रुपये कहाँ से आयेंगे। भोजन के लिए तो ठिकाना हो नहीं, दंड कहाँ से दें?'
और कुछ नहीं है, घर तो है। इसे रेहन रख दो। और अब विलायती कपड़े भूलकर भी न बेचेना। सड़ जायँ, कोई परवाह नहीं। तुमने सील तोड़कर यह आफत सिर ली। मेरी दवा-दारू की चिन्ता न करो। ईश्वर की जो इच्छा होगी, वह होगा। बाल-बच्चे भूखों मरते हैं, मरने दो। देश में करोड़ों आदमी ऐसे हैं, जिनकी दशा हमारी दशा से भी खराब है। हम न रहेंगे, देश तो सुखी होगा।
छकौड़ी जानता था, मम्बा जो कहती है, वह करके रहती है, कोई रन नहीं सुनती। वह सिर झुकाये, अम्वा पर मुंमलाता हुआ घर से निकलकर महाजन के बर की ओर चला।