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मानसरोवर


यह अपने काम में इतनी तन्मय थी कि उसे चैनसिंह के आने की खबर ही न हुई । एकाएक उसने आहट पाकर सिर उठाया, तो चैनसिंह को खड़ा देखा।

मुलिया की छाती धक् से हो गई। जी में आया, भाग जाय, मावा उलट दे और खाली झाना लेकर चली जाय ; पर चैनसिंह ने कई गज के फासले से ही रुक- कर कहा --- डर मत, हर मत, भगवान् जानता है, मैं तुझसे कुछ न बोलूँगा। जितनी घास चाहे, छील ले, मेरा हो खेत है।

मुलिया के हाथ सुन्न हो गये, खुरपी हाथ में जम-सी गई। घास नजर ही न आती थी । जी चाहता था, जमीन फट जाय और मैं समा जाऊँ। अमीन आँखों के सामने तैरने लगी।

चैनसिंह ने आश्वासन दिया --- छीलती क्यों नहीं? मैं तुमसे कुछ कहता थोड़े हो हूँ। यही रोज चलो आया कर, मैं छोल दिया करूंगा।

मुलिया चित्र लिखित-सी बैठी रही ।

चैनसिंह ने एक कदम और आगे बढ़ाया और बोला --- तू मुझसे इतना डरती क्यों है ? क्या तू समझती है, मैं आज भी तुझे सताने आया हूँ ? ईश्वर जानता है, कक भी तुझे सताने के लिए मैंने तेरा हाथ नहीं पकड़ा था। तुझे देखकर आप-ही- भाप हाथ बढ़ गये। मुझे कुछ सुध हो न रहो। तू चली गई, तो मैं वहीं बैठकर घण्टों रोता रहा । जी में आता था, हाथ काट डालूं। कभी जी चाहता था, जहर खा हूँ। तभी से तुझे ढूंढ़ रहा हूँ। आज तू इस रास्ते से चली, आई । मैं सारा हार छानता हुआ यहाँ आया हूँ। अब जो सज़ा तेरे जी में आये, दे दे। अगर तू मेरा सिर भी काट ले, तो गर्दन न हिलाऊँगा। मैं शोहदा था, लुचा था, लेकिन जब से तुझे देखा है, मेरे मन की पारी सोट मिट गई है। अब तो यही जी में आता है कि तेरा कुत्ता होता और तेरे पीछे-पीछे चलता, तेरा घोड़ा होता, तब तो तू अपने हाथों ले मेरे सामने, घास डालती। किसी तरह यह चोला तेरे काम आवे, मेरे मन को यह सबसे बड़ी लालसा है। मेरी जवानी काम न आवे, पर मैं किसो बोट से ये आते कर रहा है । बहा भागवान् था महाबोर, जो ऐसी देवी उसे मिली।

मुलिया चुपचाप सुनती रही, फिर सिर नीचा करके भोलेपन से बोली-तो तुम मुझे क्या करने को कहते हो ?

चनसिह और समीप आकर बोला --- बस, तेरी दया चाहता हूँ। !