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मानसरोवर


माते बनता है, न जाते। दोनों समझ गये कि आज डांट पड़ी, शायद मजूरी भी कट बाय । चाल धौमी पड़ गई । इतने में चैनसिंह ने पुकारा-बढ़ आओ, पढ़ आओ कैसे बेर हैं, लाओ ज़रा मुझे भी दो, मेरे ही पेड़ के हैं न ?

दोनों और भी सहम उठे । आज ठाकुर जीता न छोड़ेगा। कैसा मिठा-मिठाकर बोल रहा है। इतनी ही भिगो भिगोकर लगायेगा । बेचारे और भी सिकुड़ गये।

चैनसिंह ने फिर कहा --- जल्दी से माओ जी, पक्की पको सब मैं ले लूंगा। परा एक आदमी लपककर घर से थोड़ा सा नमक तो ले लो। (बाकी दोनों मजूरों से) तुम भी दोनों भा जाओ, उस पेड़ के बेश मोठे होते हैं। बेर खा लें, काम तो करना

अब दोनों भगोड़ों को कुछ ढारस हुआ। सबों ने भाकर सब बेर चैनसिंह के मागे डाल दिये, और एक-एक छांटकर से देने लगे। एक आदमी नमक लाने होला । आध घण्टे तक चारों पुर बाद रहे। जल सब बेर उड़ गये, और ठाकुर बलने लगे, तो दोनों अपराधियों ने हाथ जोड़कर कहा-यानी, आज जानवकसी हो जाय, बसी भूख लगी थी, नहीं तो कभी न जाते।

चैनसिंह ने नम्रता से कहा- तो इसमें बुराई क्या हुई? मैंने भी तो बेर खाये। एक-गध घण्टे का हरज हुआ, यही न ? तुम चाहोगे, तो घाटे-भर का काम आध घण्टे में कर दोगे । न चाहेंगे, दिन-भर में घण्टे-सा का भी काम न होगा।

चैनसिंह चला गया, तो चारों मात करने लगे-

एक ने कहा --- मालिक इस तरह रहे, तो काम करने में जो लगता है। यह नहीं कि हरदम छाती पर सवार !

दूसरा-- -मैंने तो समझा, आज कच्चा ही खा लायेंगे।

तीसरा---कई दिन से देखता हूँ, मिजाज बहुत नरम हो गया है।

चौथा---साँझ को पूरी मजूरी मिले तो कहना !

पहला---तुम तो हो गोबर-गनेस । आदमी का रुख नहीं पहचानते ।

दूसरा---अब खूब दिल लगाकर काम करेंगे ।

तीसरा---और क्या ! जब उन्होंने हमारे पर छोड़ दिया, तो हमारा भी घरम है कि कोई कसर न छोड़ें।

चौथा---मुझे तो भैया, ठाकुर पर भी विश्वास नहीं आता।