पृष्ठ:मानसरोवर १.pdf/२९२

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गिला

जीवन का बड़ा भाग इसो घर में गुजर गया, पर कभी आराम न नसीब हुआ। मेरे पति संसार को दृष्टि में पड़े सज्जन, बड़े शिष्ट, बड़े उदार, बड़े धौम्य होंगे, लेकिन जिस पर गुजरती है. वही जानता है। संसार को तो उन लोगों को प्रशसा करने में आनन्द आता है, जो अपने घर को भाड़ में झोंक रहे हों, गैरों के पीछे अपना सर्व- नाश किये डालते हौं। जो प्राणो घरवालों के लिए मरता है, उसकी प्रशसा संसारबाले नहीं करते। वह तो उनकी दृष्टि में स्वार्थी है, कृपण है, संकीर्ण हृदय है, आचार-प्रष्ट है। इसी तरह जो लोग बाहरवालों के लिए मरते हैं, उनको प्रशसा घरवाले पर्यों करने लगे। अब इन्हीं को देखो, सारे दिन मुझे जलाया करते हैं। मैं परदा तो नहीं करतो, लेकिल सोई-सुलफ के लिए बाजार जाना भुरा मालूम होता है । और, इनका यह हाल है, कि चील मॅगवाओ, तो ऐसी दुकान से लायेंगे, जहाँ कई ग्राहक भूलकर भी न जाता हो। ऐसी दुकानों पर न तो चीज़ अच्छी मिलतो है, न तौल ठीक होता है, न दाम हो उचित होते हैं। यह दोष न होते, तो वह दृशान पदनाम हो क्यों होतो; पर इन्हें ऐसी हो गई-पौती दुकानों से चीजें लाने का मरत है। बार-बार कह दिया, साइव, किसी चलती हुई दूकान से पौदे लाया करो। वहाँ माल अधिक खपता है। इसलिए ताजा माल आता रहता है, पर इनकी तो टुपूजियों से बनती है, और वे इन्हें उलटे छूरे से मुंहते हैं । गेहूं लायेंगे, तो सारे बाजार से खराब, धुना हुआ; चावल ऐसा मोटा कि बैल भी न पूछे, दाल में कराई और करद भरे हुए। मनों लकडी जला डालो, क्या मजाल कि गले। घी लायेंगे, तो आधौआध तेल, या सोलह आने कोकोजेम और दर असली घी से एक छटाँक कम ! तेल लायेंगे तो मिला- वट, बाले में डालो, तो चिकट आय; पर दाम दे पायेंगे शुद्ध प्रविले के तेल का । किसी चलती हुई, नामो दुकान पर जाते तो इन्हें जैसे डर लगता है। शायद ऊँची दुकान और फीके पकवान के कायल है। मेरा अनुभव तो यह है, कि नोची दुकान पर ही सड़े पकवान मिलते हैं।

एक दिन की बात हो, तो बस्ति कर ली जाय। रोज-रोज का टंटा नहीं सहा