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ईदगाह

महमूद---लेकिन दौड़ती तो नहीं, उछल-कूद तो नहीं सकतीं।

मोहसिन-हाँ, उछल-कूद नहीं सकतों , लेकिन उस दिन मेरो, गाय खुल गई थी और चौधरी के खेत में जा पड़ी थी, तो अम्म! इतना तेज दौड़ी कि मैं उन्हें न पा सका, सच।

आगे चले। हलवाइयों की दुकाने शुरू हुई। आज खूब सजी हुई थी। इतनी मिठाइयाँ कौन खतिा है ? देखो न, एक-एक दुकान पर मन होंगी। सुना है, रात को जिज्ञात आर खरीद लें जाते हैं। अब्बा कहते थे कि आधी रात को एक आदमो इर दूकान पर जाता है और जितना माल घचा हौता है, वह सब तुलच देता है और सचमुच के रुपये देता है, बिलकुल ऐसे ही रुप्ये।

हामिद को यकीन न आया---ऐसे रुपये जिन्नात को छहाँ से मिल जायँगे ?

हसिन ने कहा---जिन्नात को रुपये को क्या कमी ? जिस खजाने में चाहे वळे जायें। लोहे के दरवाज़ तक उन्हें नहीं रोक सकते जनाव, आप हैं किस फेर में। हीरे-जवाहरात तक उनके पास रहते हैं। जिससे खुश हो गये, उसे टोकरों जवाहरात दे दिये। अभी यहीं बैठे हैं, पाँच मिनट में कलकत्ता पहुँच जायें।

हामिद ने फिर पूछा---जिन्नात बहुत बड़े-बड़े होते होगे ?

मोहसिन---एक-एक आसमान के बराबर होता है जी। ज़मीन पर खड़ा हो जाय तो उसका सिर आसमान से ना लगे ; मगर चाहे तो एक लोटे में घुस जाय।

हामिद---लोग उन्हें कैसे खुश करते होंगे ? कोई मुझे वह मन्तर बता दे, दो एक जिन्न को खुश कर लें।

मोइसिन---अब यह तो मैं नहीं मानता; लेकिन चौधरी साहब के काबू में बहुत-से जिन्नात हैं। कोई चीज़ चोरी जाय, चौधरी साहब उसका पता लगा देंगे और चोर का नाम भो बता देंगे। जुमरातो की बछवा उस दिन खो गया था। तीन दिन हैरान हुए, कहीं न मिली। तब झक मारकर चौधरी के पास गये। चौधरी ने तुरन्त जता दिया, मवेशीखाने में है और वहीं मिला। जिन्नात कर उन्हें सारे जहान की खबरें दे जाते हैं।

अब उसकी समझ में आ गया कि चौधरी के पास क्यों इतना धन है, और क्यों उनकी इतना सम्मान है।

आने चले। यह पुलिस लाइन है। यहाँ सब कानिसटिबिल कवायद करते हैं।