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गिला

ईश्वर को दया से आपके दो बच्चे हैं, दो बच्चियां भी हैं। ईश्वर की दया कहुँ, या कोप कहूँ । सब-के-सब इतने उधमी हो गये हैं कि खुदा को पनाह ; मगर क्या मजाल है कि यह भोंद किसी को कड़ी आँखों से भी देखें रात के आठ बज गये हैं, युवराज अभी घूमकर नहीं आये । मैं घबरा रही हूँ, आप निश्चिन्त बैठे अख. बार पढ़ रहे हैं । मलाई हुई बातो हूँ और अखबार छोनकर कहतो हूँ, जाकर जरा देखते क्यों नहीं, लौंडा कहाँ रह गया ? न जाने तुम्हारा हृदय कितना कठोर है। ईश्वर ने तुम्हें सन्तान हो न जाने क्यों दे दो । पिता का पुत्र के साथ कुछ तो धर्म है ! तप आप भी गर्म हो जाते है। अभी तक नहीं आया ? बड़ा शैतान है। आज बचा आते हैं, तो कान उखास लेता हूँ। मारे हटरों के खाल उधेडकर रख दंगा। यो दिकर तैश के साथ आप उसे खोजने निकलते हैं। संयोग को पात, आप उपर जाते हैं, इधर लडका आ जाता है। मैं पूछती हूँ, तू किधर से आ गया ? वह तुझे हूँढ़ने गये हुए हैं। देखना, आज कैसो मरम्मत होती है। यह आदत हो छूट जायगी। दाँत पौस रहे थे। आते हो होंगे । छड़ी भो उनके हाथ में है। तुम इतने अपने मन के हो गये हो कि धात नहीं सुनते ! आज आटे दाल का भाव मालम होगा। लड़का सहम जाता है और लम्प जलाकर पढ़ने बैठ जाता है। महाशयको दो-ढाई घण्टे के बाद लौटते हैं, हैरान और परेशान और बदहवास । घर में पाँव रखते हो पूछते हैं --- आया कि नहीं ?

मैं उनका क्रोध उत्तेजित करने के विचार से कहती हूँ --- आकर बैठा तो है, जाकर पूछते क्यों नहीं ? पूछकर हार गई, कहाँ गया था, कुछ बोलता ही नहीं।

आप गरजकर कहते है --- मन्नू, यहाँ आओ।

लड़का थरथर कांपता हुआ मार थांगन में खडा हो जाता है। दोनों बच्चियों घर में छिप जाती हैं कि कोई बड़ा भयंकर काण्ड होनेवाला है। छोटा बच्चा खिड़की से चूहे की तरह झांक रहा है। भाप क्रोध से बौखलाये हुए हैं। हाध में छहो है हो, मैं भी वह क्रोधोन्मत्त आकृति देखकर पछताने लगती हूँ, कि कहाँ से इनसे शिकायत की । आर लडके के पास जावे हैं, मगर छड़ी जमाने के बदले आहिस्ते से उस के कन्धे पर हाथ रखकर बनावटो क्रोध से कहते हैं-तुम कहाँ गये थे जो ? मना किया जाता है, मानवे नहीं हो । खबरदार, जो अब कभी इतनी देर को होगी । आदमी शाम को अपने घर चला आता है या मटरगश्त करता है?