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मानसरोवर


मैं समझ रही हूँ कि यह भूमिका है। विषय भन आयेगा। भूमिका तो धुरो नहीं; लेकिन यहाँ तो भूमिका पर ही इति हो जाती है । बस, आपका क्रोध शान्त हो गया। बिलकुल जैसे क्वार की घटा-घेर-घार हुमा, काले बादल आये, गड़गवाहट' हुई और गिरी क्या, चार बूंदें। लड़का अपने कमरे में चला जाता है, और शायद सुशी से नाचने लगता है।

मैं पराभूत होकर कहती हूँ --- तुम तो जैसे डर गये । मला दो-चार तमाचे तो लगाये होते ! इसी तरह तो लड़के शेर हो जाते हैं।

आप फरमाते हैं --- तुमने सुना नहीं, मैंने कितने जोर से डाटा बचा की जान ही निकल गई होगी। देख लेना, जो फिर कभी देर में आये ।

'तुमने डाटा तो नहीं, हाँ, आसू पोछ दिये।'

'तुमने मेरी डट सुनौ नहीं ?

'क्या कहना है, आपकी डांट का ! लोगों के कान बहरे हो गये । लाओ, तुम्हारा गला सहला दूं।'

आपने एक नया सिद्धान्त निकाला है कि दण्ड देने से लड़के खराब हो जाते हैं। आपके विचार से लड़कों को आजाद रहना चाहिए। उन पर किसी तरह का बन्धन, शासन या दवाव न होना चाहिए। आपके मत से शासन वालकों के मानसिक विकास में बाधक होता है। इसी का यह फल है कि लड़के दे-नवेल के ऊँट बने हुए हैं। कोई एक मिनट भी चिताब खोलकर नहीं बैठता। कभी गुल्ली-डण्डा है, कभी गोलिया, कभी कनकौवे । श्रीमान् भो लड़कों के साथ खेलते हैं। चालीस साल की उम्र और लड़कपन इतना। मेरे पिताजी के सामने मजाल थी कि कोई लड़का कनकौवा उना है, या गुल्लो-डण्डा खेल सके? खून पो जाते। प्रात:काल से लड़कों को लेकर बैठ जाते थे। स्कूल से ज्यों ही लड़के भाते, फिर ले बैठते थे । बम सन्ध्या समय आध घण्टे को छुट्टो देते थे। रात को फिर जोत देते । यह नहीं कि आप तो अखबार पढ़ा करें और लड़के गली-गली भटकते फिरें। कभी-कभी आप मींग कटाकर बछड़े मन जाते हैं। लड़कों के साथ ताश खेलने बैठा करते हैं। ऐसे बाप का भला लड़कों पर क्या रोब हो सकता है ? पिताजी के सामने मेरे भाई सोधे ताक नहीं सकते थे। उनको आवाज़ सुनते ही तहलका मच जाता था। उन्होंने घर में कदम रखा और शान्ति का आभास हुआ। उनके सम्मुख जाते लड़कों के प्राण सूखते थे। उसी शासन की यह