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रसिक संम्पादक

'नवरस' के सम्पादक पं. चोखेलाल शर्मा की धर्मपत्नी का जब से देहान्त हुआ है, आपको स्त्रियों से विशेष अनुराग हो गया है और रसिकता को मात्रा भी कुछ बढ़ गई है। पुरुषों के अच्छे अच्छे लेख रद्दी में डाल दिये जाते हैं । पर देवियों के लेख कैसे भी हों, तुरन्त स्वीकार कर लिये जाते हैं, और बहुधा लेख को रसोद के साथ लेख को प्रशसा कुछ इन शब्दों में की जाती है— आपका लेख पढ़कर दिल थामकर रह गया, अतीत जीवन आँखों के सामने मूर्तिमान हो गया, अथवा आपके भाव साहित्य-सागर के उज्ज्वल रत्न हैं, जिनकी चमक कभी कम न होगी । और कविताएँ तो हृदय को हिलोरें, विश्ववीणा की अमर तान, अनन्त को मधुर वेदना, निशा का नीरव गान होती थी। प्रशंसा के साथ दर्शनों की उत्कृष्ट अभिलाषा भी प्रकट की जाती थी --- यदि आप कभी इधर से गुजरे, तो मुझे न भूलिएगा। जिसने ऐसी कविता की सृष्टि की है, उसके दर्शनों का सौभाग्य मुझे मिला, तो अपने को धन्य मानूंँगा।

लेखिकाएंँ अनुराग-मय प्रोत्साहन से भरे हुए पत्र पाकर फूली न समाती । जो देश अभागे भिक्षुक की भाति स्तिने ही पत्र-पत्रिकाओं के द्वार से निराश लौट आये थे, उनका यही इतना आदर । पहली ही बार ऐसा सम्पादक अन्मा है, जो गुणों का पारखी है। और सभी सम्पादक अहम्मन्य है, अपने आगे किसी को समझते हो नहीं। जरा-सी सम्पादको क्या मिल गई, मानों कोई राज्य मिल गया। इन सम्पा. दकों को कहीं सरकारी पद मिल जाय तो अन्धेर मचा दें? वह तो कहो कि सरकार इन्हें पूछती नहीं । उसने बहुत अच्छा किया, जो आर्डिनेन्स पास कर दिये । और स्त्रियों से द्वेष करो। यह ससी का दण्ड है। यह भी सम्पादक ही है, कोई घास नहीं छोच्ते और सम्पादक भी एक जगत्-विख्यात पत्र के। नवरस' सम पन्नों में राजा है।

चोखेलालजी के पत्र की प्राहक संख्या बड़े वेग से बढ़ने लगी। हर डाक से धन्यवादों को एक बाढ़-सी आ जाती, और लेखिकाओं में उनकी पूजा होने लगी।