तो रस भरी बातें सुनकर फूल हो उठती हैं। यह तो नवयौवना है। मैंने रूप
यौवन-का ऐसा सुन्दर संयोग नहीं देखा था।'
'मेरे हृदय पर तो यह रूप जीवन-पर्यन्त के लिए अंकित हो गया। शायद कभी न भूल सकू।'
'मैं तो फिर भी यही कहता हूँ कि कोई वेश्या है।'
'रूप की देवी वेश्या भी हो, तो उपास्यं है।'
'यही खड़े-खड़े कवियों की-सी बातें करोगे, जरा यहाँ तक चलते क्यों नहीं। तुम केवल खड़े रहना, पाश तो मैं डालूंँगा।'
'कोई कुल-वधू है।'
'कुल-वधू पार्क में आकर सोये, तो इसका इसके सिवा कोई अर्थ नहीं कि आकर्षित करना चाहती है और यह वेश्या मनोवृत्ति है।'
'आजकल की युवतियां भी तो फार्वर्ड होने लगी हैं।'
'फार्वर्ड युवतियाँ युवकों से आँखें नहीं चुराती।'
'हाँ, लेकिन है कुल-वधू, कुल-वधू से किसी तरह की बातचीत करना मैं बेहूदगी सममता हूँ।'
'तो चलो, फिर दौड़ लगायें।'
'लेकिन दिल में तो वह मूर्ति दौड़ रही है।'
'तो आभो वैठे। अब वह उठकर जाने लगे, तो उसके पीछे चलें। मैं हूँ, वेश्या है।'
'और मैं कहता हूँ, कुल-वधू है।'
'तो दस-दस की बाभी रही।'
दो वृद्ध पुरुष धीरे-धीर मौन की ओर ताकते आ रहे हैं, मानों खोई बवानी हूँढ़ रहे हों। एक को कमर झुकी, बाल काले, शरीर स्थूल ; दूसरे के बाल पके हुए पर कमर सोधो, इकहरा शरीर । दोनों के दांत टूटे; पर नकली दाँत लगाये, दोनों की आंखों पर ऐनक । मोटे महाशय कोल हैं, छरहरे महोदय शक्टर ।
वकील --- देखी, यह बीसवीं सदी की करामात !
डाक्टर --- जी हां, देसी, हिन्दुस्तान दुनिया से भला तो नहीं है !
'लेकिन आप इसे शिष्टता तो नहीं कर सकते ?'
'शिष्टता की दुहाई देने का अब समय नहीं।'