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मानसरोवर

'अर्थात् ?'

'अर्थात् यह कि कभी-कभी मैं भी आपके घर आकर अपनी आखें ठंडी कर दिया करूंगा।'

'अगर आप इस इरादे से आयें, तो आपका दुश्मन हो जाऊँ।'

'ओ हो, भाप तो मंकी-ग्लैंड का नाम सुनते ही जवान हो गये।'

'मैं तो समझता हूँ, यह भी डाक्टरों ने लूटने का एक लटका निकाला है । सच।'

'अरे साहब, इस रमणी के स्पर्श में जवानी है, आप है किस फेर में ! उसके एक-एक अंग में, एक-एक चितवन में, एक-एक मुस्कान में, एक-एक विलास में, जवानी भरी हुई है । न सौ मंकी-ग्लैंड न एक रमणी का पाहु-पाश ।'

'अच्छा कदम बढ़ाइए, मुवक्किल पार बैठे होंगे।'

'यह सुरत याद रहेगी।'

'फिर आपने याद दिला हो।'

'वह इस तरह सौई है, इसलिए कि लोग उसके रूप को, उसो भंग-विन्यास कों, उसके बिखरे हुए फेशों को, उसकी खुली हुई गर्दन को देखें और अपनी छाती पीटें । इस तरह चले जाना, उसके साथ अन्याय है । वह बुला रही है, और आप भागे जा रहे हैं।'

'हम जिस ता दिल से प्रेमकार सकते है, जवान कभी कर ही नहीं सकता।'

'बिलकुल ठीक ! मुझे तो ऐसी औरतों से साविञ्च पा चुका है, जो रसिक बूढ़ों झो खोजा करती हैं । जवान तो छिछोरे, उच्छृसन्य, अस्थिर और गर्वीले होते हैं । वे प्रेम के बदले में कुछ चाहते हैं। यहां निःस्वार्थ भाव से आत्म-समर्पण करते हैं।'

'आपकी बातों से दिल में गुदगुदी हो गई।'

'मगर एक बात याद रखिए, कहीं उसका कोई जवान प्रेमी मिल गयो, ती ?'

'तो मिला करे, यहाँ ऐसों से नहीं डरते।'

'आपकी शादी को कुछ बात-चीत थी तो?'

'हां, थी, मगर अपने ही लड़के जब दुश्मनी पर कमर बाधे, तो क्या हो । मेरा था लड़का यशवन्त तो मुझे बन्दुक दिखाने लगा । यह जमाने की खूबी है।'

अक्टूबर को धूप तेज हो चली थी। दोनों मित्र निकल गये ।

( ३ )

दो देवियां- एक वृद्धा, दुसरी नवयौवना पार्क के फाटक पर मोटर से उतरी और पार्क में हवा खाने आई। उनको निगाह भी उस नींद की माती युक्ती पर पड़ी।