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ईदगाह


सहसा ईदगाह नज़र आया। ऊपर इमलो के घने वृक्षों को छाया है। नीचे पक्का फर्श है, जिस पर जाजिम बिछा हुआ है। और रोजेदारों को पक्तियाँ एक के पोछे एक न जाने कहाँ तक चलो गई हैं, पक्को जगत के नीचे:सर्क, जहाँ जाजिम भी नहीं है।, नये आनेवाले कर पोछे को कतार में खड़े हो जाते हैं। आगे जगह नहीं है। यहाँ कोई धन और पद नहीं देखता। इस्लाम की निगाह में सब बराबर हैं। इन प्रामीणों ने भी वज़ दिया और पिछलो पक्ति में खड़े हो गये। कितना सुन्दर सञ्चालन है, कितनो सुन्दर व्यवस्था। लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सब-के-सजे एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हैं और एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते हैं। कई बार यह क्रिया होती है, जैसे बिजली की ला बत्तियाँ एक साथ प्रदोप्त हों और एक साथ चुक जायें, और यही क्रम चलता रहे। कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिके क्रियाएँ, विस्तार और अनन्तता हृदय को श्रद्धा, गर्म और आत्मानन्द से भर देतो थी, मानौं भ्रातृत्व झा एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ौ में पिरोये हुए है।

( २ )

नमाज़ खत्म हो गई है। लोग आपस में गले मिल रहे हैं। तव मिठाई और खिलौने की दुकान पर धावा होता है। ग्रामीणों का यह दल इस विषय में चालकों से कम उत्साही नहीं है। यह देखो, हिंडोला है। एक पैसा देकर चढ़ जा। कभी आसमान पर जाते हुए मालूम होगे, को जमोन पर गिरते हुए। यह चखी है, लकड़ी के हाथी, घोड़े, ऊँट छड़ों से लटके हुए हैं। एक पैसा देकर बैठ जाओ और, पचीख चकरों का मजा लो। महमूद और मोहसिन और भूरे और सम्मी इन घोड़ों और ऊँटों पर बैठते हैं। हामिद दूर खड़ा है। तीन ही पैसे तो उसके पास है। अपने कोष का एक तिहाई ज़रा सा चक्कर खाने के लिए नहीं दे सकता है।

सच चखियों से उतरते हैं। अब खिलौने लेंगे। इधर दुकानों की कतार लगी हुई है।' तरह-तरह के खिलौने हैं–सिपाहों और गुजरिया, राजा और वकील और भिदती और धोबिन और साधू। वाह ! तिने सुन्दर खिलौने हैं। अब बोला ही। म्वाइते हैं। महमूद विवाह लेता है, खाक थर्दी और लाल पगड़ीवाला, कन्धे पर ' धन्इ रखे हुए, मालूम होता है, अभी कवायद किये चला आ रहा है। मोहसिन को , भिक्षी पसन्द आया। कमर झुकी हुई है, ऊपर मशक रखे हुए है। मशक का मुंह