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मानसरोवर

( ३ )

ग्यारह बजे सारे गाँव में हलचल मच गई। मेलेवाले आ गये। मोहसिन की। छोटी बहन ने दौड़ कर भिश्ती उसके हाथ से छीन लिया और मारे खुशी के जो उछली, तो मियाँ भिश्ती नीचे आ रहे और सुरलोक सिधारे। इस पर भाई-बहन में मार-पीट हुई। दोनों खूब थे। उनकी अम्माँ यह शोर सुनकर बिगड़ और दोन को ऊपर से दो-दो चाटें और लगाये।

मियाँ नूरे के वकील का अन्त उनके प्रतिष्ठानुकूल इससे ज्यादा गौरवमय हुआ। चकौल ज़मीन पर या ताक पर तो नहीं बैठ सकता। उसी मर्यादा का विचार तो करना ही होगा। दीवार में दो खुटिया गाड़ी गईं। उन पर लकड़ी का एक पटरी रखा गया। पटरी पर छापेज़ या कालीन बिछाया गया। वकील साहव राजा भौज को अति सिंहासन पर विराजे। नूरे ने उन्हें पखा झलना शुरू किया। अदालतों में खस की टट्टियाँ और बिजली के पंखे रहते हैं। क्या यहां मामूली पखा भी हों। कानून की गर्मी दिमाग़ पर चढ़ जायगी झि नहीं। बाँस छ। पखा आया और नूरे हवी करने लगे। मालूम नहीं, पंखे की हवा से, या पखे की चोट से वकील साहब स्वर्ग लोक से मृत्युलोक में आ रहे और उनका सादी का चोला माही में मिल गया। फिर बड़े जौर शोर से मातम हुआ और वकील साहय की अस्थि घूर पर डाल दो गई।

अब रहा मद्दमूद का सिपाही। उसे चटपट गाँव का पहरा देने का चार्ज मिल गया ; लेकिन पुलिस का सिपाही कोई साधारण व्यक्ति तो नहीं, जो अपने पैरों चले। वह पालकी पर चलेगा। एक टोकरी आई, उसमें कुछ लाल रङ्ग के फटे-पुराने चिथड़े बिछाये गये, जिसमें सिपाही साहब आराम से लेटें। नूरे ने यह टोकरी उठाई और अपने द्वार का चक्कर लगाने लगे। उनके दोनों छोटे भाई सिपाही की तरफ से ‘छोनेवाले, जागते लहो’ पुकारते चलते हैं। मगर रात तो अंधेरी होनी चाहिए। महमूद को ठोकर लग जाती है। टोकरी उसके हाथ से छूटकर गिर पछुती है और मियाँ सिपाही अपनी बन्दूक लिये ज़मीन पर आ जाते हैं और उनकी एक टॉग में विकार आ जाता है। महमुद को आज ज्ञात हुआ कि वह अच्छा डाक्टर है। उसको ऐसा मरहम मिल गया है, जिससे वह इट टाँग को आनन-फानन जोड़ सकता है। केवल - गूलर का दूध चाहिए। गूलर का दूध आता है। टाँग जोड़ दी जाती है। लेकिन सिपाही को ज्यों ही खड़ा किया जाता है, टॉग जवाब दे देती है। शल्यक्रिया असफल