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ईदगाह


हुई, तब उसकी दूसरी टॉग भी तोड़ दी जाती है। अब कस-से-कम एक जगह आरा से बैठ तो सकता है। एक टॉग से तो न चल सकता था, ने बैठ सकती था। अझ वह सिपाही सन्यासी हो गया है। अपनी जगह पर बैठा-वैठा पहरा देता है। भीकभी देवता भी बन जाता है। उसके सिर को लरक्षर साझा खुरच दिया गया है। अब उसका जितना रूपान्तर चाहो, कर सकते हो। कभी-कभी तो उससे बाट का काम भी लिया जाता है।

अब मियाँ हामिद का हाल सुनिए। अमीना उसकी आवाज़ सुनते ही दौड़ी और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। सद्दसा उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चौकी ।

‘यह चिमटा कहाँ था ?’

‘मैंने मोल लिया है।’

‘तीन पैसे दिये ।'

अमीना ने छाती पीट की। यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुआ, कुछ खाया न पिया। लाया क्या, चिमटा ! सारे मेले में तुझे और कोई चीज़ न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया ?

हामिद ने अपराधी भाव से कहा--- तुम्हारी उंगलियों तवे से जल जाती थीं; इसलिए मैंने उसे के लिया।

बुढ़िया का क्रोध तुरन्त स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो गर्भ होता है और अपनी सारी फस, शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह धा, खूब औस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग और कितना सद्भाव और ? कितना विवेक है। दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मुद कितना ललचाया होगा। इतना ज़ब्त इससे हुआ कैसे ! वह भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गदगद हो गया।

और अब एक बड़ी विचित्र वात हुई। हामिद के इस चिमटे से भी विचित्र। बच्चे हामिद ने चुढे हामिद का पार्ट खेला था। युढ़िया अमीना घाला अमीना बन गई। वह रोने लगी। दामन फेडर हामिद को दुआएँ देतीं जाती थी और को अ-बड़ी बूं। निती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता !