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मानसरोवर


करुणा---छी। सुखकर काँटा हो गये। क्या वहाँ भर पेट भोजन भी नहीं मिलता ! तुम तो कहते थे, राजनैतिक आदमियों के साथ चढ़ा अच्छा व्यवहार किया जाता है; और वह तुम्हारे साथ क्या हो गये, जो तुम्हें आर्यों पर घेरे रहते थे और तुम्हारे पसीने की जगह खून बहाने को तैयार रहते थे ?

आदित्य की त्योरियों पर बल पड़ गये। बोले---यह बड़ा हो कटु अनुभव है। करुणा। मुझे न मालूम था कि मेरे कैद होते ही लोग मेरो ओर से य आँखें फेर लेंगे, कोई बात भी न पूछेगा। राष्ट्र के नाम पर मिटनेवालों का यह पुरस्कार हैं, यह मुझे न झालूम था। जनता अपने सेवकों को बहुत जल्द भूल जाती है, यह तो मैं जानता था। लेकिन अपने सहयोगी और सहायक इतने बेवफ़ा होते हैं, इसका मुझे यह पहला ही अनुभव हुआ। लेकिन मुझे किसी से शिकायत नहीं। सेवा स्वयं अपना पुरस्कार है। मेरी भूल थी कि मैं इसके लिए यश और नाम चाहता था।

करुणा --- तो क्या वहाँ भोजन भी न मिलता था ?

आदित्य -यह न पूछो करुणा, बढ़ी करुण इथा है। बस, यही गनीमत समझ किं जीता लौट आया। तुम्हारे दर्शन बदे थे, नहीं कष्ट तो ऐसे-ऐसे उठाये कि अब तक मुझे प्रस्थान कर जाना चाहिए था। मैं जरा लेगा। खड़ा नहीं रहा जाता। दिन-भर में इतनी दूर आया हूँ।

करुणा --- चलकर कुछ खा लो, तो आराम से लेटो। ( बालक को गोद में उठाकर ) बाबूजी हैं बेटा, तुम्हारे बाबू जो। इनको गोद में जाओ, तुम्हें प्यार करेंगे।

आदित्य नै आँसू-भरी आँखों से चालक को देखा, और उनका एक-एक रोम उनका तिरस्कार करने लगा। अपनी जीर्ण दशा पर उन्हें कभी इतना दुःख न हुआ था। ईश्वर की असीम दया से यदि उनकी दशा सँभल जाती, तो वह फिर कभी राष्ट्रीय आन्दोलन के समीप ने जाते हैं इस फूल-से बच्चे को यो ससार में लाकर -दरिद्रता की आग में झोंकने का उन्हें क्या अधिकार था ? वह अब लक्ष्मी को उपासना करेंगे, और अपना क्षुद जीवन बच्चे के लालन-पालन के लिए अर्पित कर देंगे। उन्हें उस समय ऐसा ज्ञात हुआ कि बालक उन्हें उपेक्षा की दृष्टि से देख रहा है, मानें कइ रहा है-'मेरे साथ अपना कौन-सा कर्तव्य पालन किया ?' उनकी सारी कामना, सारा प्यार चालक को हृदय से लगा लेने के लिए अधीर हो उठा, पर हाथ न फैल सके। हार्थों में शक्ति ही न थी।