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मानसरोवर


हूँ। जीवन की लीला समाप्त हो रही है। दीपक को बुझते हुए देख रहा हूँ। छह नहीं सकता, कब आवाज़ छन्द हो जाये। जो कुछ कहना है, वह कह डालना चाहता हूँ। बर्थों वह लालसा है जाऊँ ? मेरे एक प्रश्न का जवाब दोगी, पूर्छ ?

करुणा के मन को सारी दुर्बलता, सारी शोक, सारी वेदना मान लुप्त हो गई, और उनकी जगह उसे आत्मबल का उदय हुआ, जो मृत्यु पर हँसता है, और विपत्ति कै साँप से खेलता है। रत्न-उदित मखमली भ्यान में जैसे तेज तलवार छिपी रहती है, ' जल के कोमल प्रवाह में जैसे असीम शक्ति छिप रहती है, वैसे ही रमणी झा कोमल हृदय साहस और धैर्य को अपनी गोद में छिपाये रहता है। क्रोध जैसे तलवार को बाहर खींच लेता है, विज्ञान जैसे जल शक्ति का उद्घाटन कर लेता है, वैसे ही प्रेम रमण के साहस और धैर्य को प्रदीप्त कर देता है।

अरुणा ने पति के सिर पर हाथ रखते हुए कहा---पूछते क्यों नहीं प्यारे।

आदित्य ने करुणा के हार्थों के कोमल स्पर्श छा अनुभव करते हुए कहातुम्हारे विचार में मेरा जीवन केसा था ? बधाई के योग्य ? देखो, तुमने मुझसे कभी परदा नहीं रखा । इस समय भी स्पष्ट ही कहना। तुम्हारे विचार में मुझे अपने जीवळ पर हँसनी चाहिए या होना चाहिए ?

करुणा ने उल्लास के साथ कहा---यह प्रश्न क्यों करते हो प्रियतम ? क्या मैंने तुम्हारी उपेक्षा भी की है ? तुम्हारा जीवन देवताओं का-सा जीवन था, निःस्वार्थ, निर्लिप्त और आदर्श । विन-बाधाओं से तग आकर मैंने तुम्हें कितनी ही वार संसार की ओर खींचने की चेष्टा की है; पर उस समय भी मैं मन में जानती थी कि मैं तुम्हें ऊँचे आसन से गिरा रही हैं। अकार तुम माया-मोह में फँसे होते, त कदाचित मेरे मन को अधिक सन्तोष होता ; लेकिन मेरी आत्मा को वह गईं और उल्लास ने होता, जो इस समय हो रहा है। मैं अगर किसी को बड़े-से-बड़ा आशीर्वाद दे सकती हैं, तो वह यही होगा कि उसका जीवन तुम्हारे जैसा हो।

यह कहते-कहते करुणा का आभाहीन मुखमण्डल ज्योतिर्मय हो गया, मान उसकी आत्मा दिव्य हो गई हो। आदित्य ने सगर्व नेत्रों से करुणा को देखकर कहा---बस, अब मुझे सन्तोष हो गया करुणा, इस बच्चे की और मुझे अब कोई शक नहीं है। में उसे इससे अधिक कुशल हाथ में नहीं छोड़ सकता। मुझे विश्वास है कि जीवन का यह ऊँचा और पवित्र आदर्श सदैव तुम्हारे सामने रहेगा। अब मैं मरने को तैयार हैं।