पृष्ठ:मानसरोवर १.pdf/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

५६
मानसरोवर

सकता है। अतएव उसका अतःकरण अनिवार्य वेग के साथ विलासमय जीवन की ओर झुकता था। यहाँ तक कि धीरे-धीरे उसे त्याग और निग्रह से घृणा होने लगे। वह दुरवस्था और दरिद्रता को हेय समझता था। उसके हृदय में था, भाव न थे, केवल मस्तिष्क था। मस्तिष्क में दर्द छहाँ, दया कहाँ है वहीं तो तर्क है, हौसला है, मसूबे हैं।

सिंध में अढ़ आईं। हजारों आदमी तबाह हो गये। विद्यालय ने ची एङ सेवासमिति भेजी। प्रकाश के मन में द्वन्द्व होने लगा-- जाऊँ या न जाऊँ। इतने दिनों अगर वह परीक्षा की तैयारी करे, तो प्रथम श्रेणी में पास हो। चुलते समय उसने बीमारी का बहाना कर दिया। करुणा ने लिखा, हुम सिध च गये, इसका मुझे खेद है। तुम बीमार रहते हुए भी वहाँ जा सकते थे। समिति में चिकित्सक भी तो थे ! प्रकाश ने पत्र का कोई उत्तर न दिया।

उड़ीसा में अकाल पड़ा। प्रजा मक्खियों की तरह मरने लगी। कांग्रेस ने पीड़ित के लिए एक मिशन तैयार किया। उन्हीं दिन विद्यालय ने इतिहास के छात्रों को ऐतिहासिक खोज के लिए लंका भेजने का निश्चय किया। करुणा ने प्रकाश को लिखा-- तुम उड़ीसा जाओ, किन्तु प्रकाश ला जाने को लालायित था। वह कई दिन इसी दुविधा में रहा। अंत को सीलोन ने उड़ीसा पर विजय पाई। अरुणा ने अबकी उसे कुछ न लिखा। चुपचाप रोती रही है।

सीलोन से लौटकर प्रकाश छुट्टियों में घर गया। करुणा उससे खिंची-खिची रही। प्रकाश मन में लज्जित हुआ और सङ्कल्प किया कि अबकी कोई अवसर आया, तो अम्म ॐ अवश्य प्रसन्न करूंगा। यह निश्चय करके वह विद्यालय लौटा। लेकिन यहाँ आते ही फिर परीक्षा की फिक्र सवार हो गई। यहाँ तक कि परीक्षा के दिन आ गये ; मगर इम्तहान से फुरस्त पाझर भी प्रकाश घर् न गया। विद्यालय के एक अध्यापक काश्मीर सैर करने जा रहे थे। प्रकाश उन्हीं के साथ काश्मीर चल खड़ा हुआ। जब परीक्षा-फल निकले, और प्रकाश प्रथम आया, तब उसे घर की याद आईं। उसने तुरत करुणा को पत्र लिखा, और अपने आने की सूचना दी। माता को प्रसन्न करने के लिए उसने दो-चार शब्द जाति-सेवा के द्दिषय में भी लिखे- अब मैं आपकी आज्ञा का पालन करने को तैयार हूँ। मैंने शिक्षा-सम्बन्ध कार्य करने का निश्चय किया है।

इसी विचार से मैंने यह विशिष्ट स्थान प्राप्त किया है। हमारे नेता भी तो विद्यालय के आचार्यों ही का सम्मान करते हैं। अभी तक इन उपाधियों के मोह से वे मुक्त