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बेटोंवाली विधवा


बिठाये जायेंगे ? दो पगतोऔ में लोग विठाये जाते तो क्या बुराई हो जातो ? यही तो होता कि बारह बजे की जगह भोज दो बजे समाप्त होता; मगर यहाँ तो सबको सोने को जल्दी पड़ी हुई है। किसी तरह यह बला सिर से टलें और चैन से सोयें। लोग कितने सटकर बैठे हुए हैं कि किसी को हिलने की भी जगह नहीं। पत्तल एक-पर- एक रखे हुए हैं। पूरियां ठण्ढो हो गई, लोग गरम-गरम मांग रहे हैं। मैदे को पूरियां ठण्डी होकर चिमड़ी हो जाती हैं। इन्हें कौन खायेगा ? रसोइये को कड़ाव पर से न जाने क्यों उठा दिया गया ? यही सब बातें नाक कटाने को है।

सहसा शोर मचा, तरकारियों में नमक नहीं। बड़ी बह जल्दी-जल्दी नमक पीसने लगी। फूलमती क्रोध के मारे ओठ चवा रही थी, पर इस अवसर पर मुँह न खोल सकती थी। बारे नमक पिसा और पत्तलों पर डाला गया। इतने में फिर शोर मचा- पानी गरम है, ठण्डा पानी लाओ। ठण्डे पानी का कोई प्रबन्ध न था, बर्फ भी न मँगाई गई थी ! आदमी बाजार दौड़ाया गया, मगर बाजार में इतनी रात गये बर्फ कहाँ ! आदमी खाली हाथ लौट आया। मेहमानों को वही नल का गरम पानी पीना पड़ा। फूलमती का बस चलता, तो लड़कों का मुंह नोच लेती। ऐसी छीछालेदर उसके घर में कभी न हुई थी। उस पर सब मालिक बनने के लिए मरते हैं। बर्फ-जैसी जरूरी चीज़ मंगवाने को भी किसो को सुविन थी। सुधि कहां से रहे। जब किसी को गप लाने से फुर्सत मिले। मेहमान अपने दिल मे क्या कहेंगे कि चले हैं बिरादरी को भोज देने और घर में बर्फ तक नहीं।

अच्छा, फिर यह हलचल क्यों मच गई ! अरे, लोग पगत से उठे जा रहे हैं। क्या मामला है?

फूलमती उदासीन न रह सकी। कोठरी से निकलकर बामदे में आई और कामतानाथ से पूछा --- क्या बात हो गई लला ? लोग उठे क्यों जा रहे हैं ?

कामता ने कोई जवाब न दिया। वहाँ से खिसक गया। फूलमती हुँ मसलाकर रह गई। सहसा कहारिन मिल गई। फूलमती ने उससे भी वही प्रश्न किया। मालूम हुआ, किसी के शोरने में मरी हुई चुहिया निकल आई। फूज्मती चित्र-लिखित-सी वहीं खड़ी रह गई। भीतर ऐसा उबाल उठा कि दीवार से सिर टकरा ले। अभागे भोज का प्रान्ध करने चले थे। इस फूहड़पन की कोई हद है, कितने आदमियों का धर्म सत्यानाश हो गया। फिर पंगत नौ न उठ जाय ? आँखों से देखकर अपना धर्म