पृष्ठ:मानसरोवर १.pdf/६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

७२
मानसरोवर


दयानाथ एक समाचार-पत्र देख रहे थे। आँखों से ऐनक उतारते हुए बोले --- मेरा विचार भी एक पत्र निकालने का है। प्रेस और पत्र में कम-से-कम दस हज़ार का कैपिटल चाहिए। पाँच हजार मेरे रहेंगे तो कोई-न-कोई साझेदार पांच हजार की मिल जायगा। पत्रों में लेख लिखकर मेरा निर्वाह नहीं हो सकता।

कामतानाथ ने सिर हिलाते हुए कहा --- अजी, राम भजो, सेत में कोई लेख छापता नहीं, रुपये कौन दिये देता है।

दयानाथ ने प्रतिवाद किया --- नहीं, यह बात तो नहीं है। मैं तो कहीं भी बिना पेशगी पुरस्कार लिये नहीं लिखता।

कामता ने जैसे अपने शब्द वापस लिये --- तुम्हारी बात मैं नहीं कहता भाई। तुम तो थोड़ा-बहुत मार लेते हो, लेकिन सबको तो नहीं मिलता।

बड़ी बहू ने श्रद्धा भाव से कहा-कन्या भाग्यवान हो तो दरिद्र घर में भी सुखी रह सकती है। अभागी हो, तो राजा के घर में भी रोयेगी। यह सम नसीबों का खेल है।

कामतानाथ ने स्त्री की और प्रशसा-भाव से देखा-फिर इसी साल हमें सीता का विवाह भी तो करना है।

सीतानाथ सबसे छोटा था। सिर झुकाये भाइयों को स्वार्थ-भरी बातें सुन-सुनकर कुछ कहने के लिए उतावला हो रहा था। अपना नाम सुनते ही बोला-मेरे विवाह की आप लोग चिन्ता न करें। मैं जब तक किसी धन्धे से न लग जाऊँगा, विवाह का नाम भी न लूंगा, और सच पूछिए तो मैं विवाह करना हो नहीं चाहता। देश को इस समय बालकों की ज़रूरत नहीं, काम करनेवालों की ज़रूरतरत है। मेरे हिस्से के रुपये आप कुमुद के विवाह में खर्च कर दें। सारी बातें तय हो जाने के बाद यह उचित नहीं है कि पण्डित मुरारीलाल से सम्बन्ध तोड़ लिया जाय।

उमा ने तीव्र स्वर में कहा-दस हजार कहाँ से आयेंगे ?

सीता ने डरते हुए कहा --- मैं तो अपने हिस्से के रुपये देने कहता हूँ।

'और शेष?'

'मुरारीलाल से कहा जाय कि दहेज़ में कुछ कमी कर दें। वह इतने स्वार्थान्ध महीं हैं कि इस अवसर पर कुछ बल खाने को तैयार न हो जायें; अगर वह तीन इज़ार में सन्तुष्ट हो जाय, तो पांच हजार में विवाह हो सकता है।