हज़ार का एक बार मिला, पच्चीस हजार का एक मकान। बीस हजार नकद में क्या
पांच हज़ार भी कुमुद का हिस्सा नहीं है ?
कामतानाथ ने नम्रता से कहा --- अम्माँ, कुमुद आपको लड़को है, तो हमारी बहिः है। आप दो-चार साल में प्रस्थान कर जायेंगो; पर हमारा और उसका पहुत दिन तक सम्बन्ध रहेगा। तब यथाशक्ति कोई ऐसी बात न करेंगे, जिससे उसका अमर हो । लेकिन हिस्से की बात कहती हो, तो कुमुद का हिस्सा कुछ नहीं। दादा जोविर थे तष और वात थी। वह उसके विवाह में जितना चाहते, खर्च करते। कोई उनक हाथ न पकड़ सकता था लेकिन अब तो हमें एक-एक पैसे की किफायत करनं पड़ेगी। जो काम एक हजार में हो जाय उसके लिए पांच हजार खर्च करना कहाँ क बुद्धिमानी है?
उमानाथ ने सुधारा --- पांच हजार क्यों दस हजार कहिए।
कामता ने भवें सिकोड़कर कहा --- नहीं, मैं पाँच हजार हो कहूँगा। एक विवाह में पाँच हजार खर्च करने की हमारी हैसियत नहीं है।
फूलमती ने जिद पकड़कर कहा --- विवाह तो मुरारीलाल के पुत्र से ही होगा पाँच हजार खर्च हो, चाहे दस हजार। मेरे पति की कमाई है। मैंने मर-मरका जोड़ा है। अपनी इच्छा से खर्च करूंगी। तुम्ही ने मेरी कोख से नहीं जन्म लिय है। कुमुद भी उसी कोख से आई है। मेरी आँखों में तुम सब एक बराबर हो। मैं किसी से कुछ मांगती नहीं। तुम बैठे तमाशा देखो, मैं सब कुछ कर लूंगी। बोस हजार में पाँच हज़ार कुमुद का है।
कामतानाथ को अब कड़वे सत्य की शरण लेने के सिवा और कोई मार्ग न रहा। बोला-अम्मा, तुम बरबस बात बढ़ाती हो। जिन रुपयों को तुम अपना समझती हो, वह तुम्हारे नहीं हैं, हमारे हैं। तुम हमारी अनुमति के बिना उनमें से कुछ नहीं खई कर सकतीं।
फूलमती को जैसे सर्प ने डस लिया-क्या कहा ! फिर तो कहना ! मैं अपने , ही सच्चे रुपये अपनी इन्छा से नहीं खर्च कर सकती ?
'वह रुपये तुम्हारे नहीं रहे, हमारे हो गये।'
'तुम्हारे होंगे, लेकिन मेरे मरने के पीछे।'
'नही. दादा के मरते ही हमारे हो गये।'