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मानसरोवर


और उदास थे कि मुझे उनसे दिकी हमदर्दी हुई और उनके घाव पर नमक छिड़कने का विचार ही लज्जास्पद जान पड़ा। हाँ, अब मुझे अपने ऊपर कुछ अभिमान हुआ और आत्माभिमान भी बढ़ा। भाई साहब का वह रोब मुझ पर न रहा। आज़ादों से खेल-कूद में शरीक होने लगी। दिल मज़बूत था। अगर उन्होंने फिर मेरी फजीहत की, तो साफ कह देंगा --- आपने अपना खून जलाकर कौन सा तर मार लिया। मैं त खेलते-कूदते दरजे में औवल आ गया। ज़बान से यह हेक) जताने का साहस ने होने पर भी मेरे रंग-ढंग से साफ़ ज़ाहिर होता था कि भाई साहब का वह आतंक मुझ पर नहीं है। भाई साहब ने इसे भाँप लिया--लनको सहज बुद्धि बड़ी तीव्र थी। और एक दिन जब मैं भौर का सारा समय गुल्ली-डडे की भेंट करके ठीक भोजन के समय लौटा, तो भाई साहब ने मान तलवार खींच ली और मुझ पर टूट पड़े-- देखता हैं, इस साल पास हो गये और दरजे में औवल आ गये, तो तुम्हें दिमास हो गया है। मगर भाई जान, घमंड तो बड़े-बडौं का नहीं रहा, 'तुम्हारी क्या हस्ती है ? इतिहास में रावण का हाल तो पढ़ा ही होगा। उसके चरित्र से तुमने कौन सा उपदेश लिया है थ य ही पढ़ गये ? महज़ इम्तहान पास कर लेना कोई चीज़ नहीं, असल चीज़ हैं बुद्धि का विकास। जो कुछ पढ़ो, उसका अभिप्राय समझो। रावण भूमण्डल का स्वामी था। ऐसे राज को चक्रवर्ती कहते हैं। आज-कल अग्रेजों के राज्य का विस्तार बहुत बढ़ा हुआ है। पर इन्हें चक्रवर्ती नहीं कह सकते। संसार में अनेक राष्ट्र अंग्रेज़ी का आधिपत्य स्वीकार नहीं करते। बिलकुल स्वाधीन हैं। रावण चक्रवती राजा था, ससार के सभी महीप उसे कर देते थे। बड़े-बड़े देवता उसकी गुलामी करदे थे। आग और पानी के देवता भी उसके दास थे ; मगर उसका अन्त क्या हुआ है घमण्ड ने उसका नाम-निशान तक मिटा दियो, कोई उसे एक चित्लू पानी देनेवाला भी न बचा। आदमी और जो कुकर्म प्याहे करे; पर अभिमान न करे, इतरा नहीं। अभिमान किया, और दीन-दुनिया दोनों से गया। शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा। उसे यह अभिमान हुआ था कि ईश्वर की उससे बढ़कर सच्चा भक्त कोई है ही नहीं। अन्त में यह हुआ कि वर्ग से नरक में ढकेल दिया गया। शाहेरूम ने भी एक बार इको विया था। भीख माँग-माँगकर मर गया। तुमने तो अभी केवल एक दरजा पास किया है, और अभी से तुम्हारे सिर पर गया, तब तो तुम आगे बढ़ चुके। अइ ६मझ लो कि तुम अपनी मेहनत से न नहीं पास हुए, अन्धे के हाथ बटेर लग गई।