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मानसरोवर


को अपने आगे-पीछे को खबर न थी। सभी मानों उस पतंग के साथ ही भाकाश में उड़ रहे थे, जहां सब कुछ समतल है, न मोटरकारें है, न टाम, न गाड़ियाँ।

सहसा भाई साहब से मेरी मुठभेड़ हो गई, जो शायद बाजार से लौट रहे थे। उन्होंने वहाँ मेरा हाथ पकड़ लिया और उग्र भाव से बोले-इन बाज़ारी लौडों के साथ घेले के कनकौए के लिए दौड़ते तुम्हें शर्म नहीं आतो ? तुम्हें इसका भी कुछ लिहाज नहीं कि अब नीची जमाअत में नहीं हो। बल्कि आठवीं जमाअत में आ गये हो और मुम्हसे केवल एक दरजा नीचे हो। आखिर आदमी को कुछ तो अपने प्रोमोशन का खयाल करना चाहिए। एक जमाना था कि लेग आठवाँ दरजा पाठ करके नायब तहसीलदार हो जाते थे। मैं कितने ही मिडिलचियों को जानता हूँ, जो आज अन्वल दरजे के डिप्टी मैजिस्ट्रेट या सुपरिटेंडेंट है। कितने हो आठवीं जमाअतवाले हमारे लोडर और समाचारपत्रों के सम्पादक है। बड़े-बड़े विद्वान् उनको मातहती में फाम करते हैं। और तुम उसी आठचे दरजे में आकर बाजारी लौड़ों के साथ कनकौए के लिए दौड़ रहे हो। मुझे तुम्हारी इस कमअक्कली पर दुख होता है। तुम ज़हीन हो, इसमें शक नहीं , लेकिन वह जेहन किस काम का, जो हमारे आत्म-गौरव की हत्या कर डाले। तुम अपने दिल में समझते होगे, मैं भाई साहब से महज़ एक दरजा नीचे हूँ, और अब उन्हें मुसको कुछ कहने का हक नहीं है। लेकिन यह तुम्हारी पालती है। मैं तुमसे पांच साल बड़ा हूँ और चाहे आज तुम मेरी ही जमाअत में आ जाओ और परीक्षकों का यही हाल है, तो निस्सन्देह अगले साल तुम मेरे समकक्ष हो जाओगे, और शायद एक साल बाद मुझसे आगे भी निकल जाओ-लेकिन मुझमें और लुममे जो पांच साल का अन्तर है, उसे तुम क्या, खुदा भी नहीं मिटा सकता। में तुमसे पांच साल बड़ा हूँ और हमेशा रहूँगा। मुझे दुनिया का और जिन्दगी का जो तसरमा है, तुम उसको बराबरी नहीं कर सकते, चाहे तुम एम० ए० और डो० लिट, न और की० फिल ही क्यों न हो जाओ। समझ किताबें पढ़ने से नहीं आती, दुनिया देखने से आती है। हमारी अम्माँ ने कोई दरजा नहीं पास किया, और दादा भी शायद पाँचवी-छठी जमाअत के भागे नहीं गये; लेकिन हम दोनों चाहे सारी दुनिया को विद्या पढ़ लें, अम्मां और दादा को हमें समझाने और सुधारने का अधिकार हमेशा रहेगा। केवल इसलिए नहीं कि वे हमारे जन्मदाता हैं ; बल्कि इसलिए कि उन्हें दुनिया का हमसे ज्यादा तजरबा है और रहेगा। अमेरिका में किस तरह की राम-