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मानसरोवर

जेनी-तुम्हारी शादी भी उसी तरह हुई होगी। तुम्हे तो बड़ा आनन्द आया होगा?

मनहर-हां, वही आनन्द आया था, जो तुम्हें मेरी गोराउण्ड पर चढने में आता है । अच्छी-अच्छी चीज़ खाने को मिलती हैं, अच्छे-अच्छे कपड़े पहनने को मिलते हैं । खूब नाच-तमाशे देखता था और शहनाइयों का गाना सुनता था। मजा तो तब आता है, जब दुलहिन अपने घर से विदा होती है। सारे घर में कुहराम मच जाता है। दुलहिन हरएक से लिपट-लिपटकर रोती है ; जैसे मातम कर रही हो।

जेनी-दुलहिन रोती क्यों है ?

मनहर - रोने का रिवाज चला आता है। हालाकि सभी जानते हैं कि वह हमेशा के लिए नहीं चली जा रही है, फिर भी सारा घर इस तरह फूट-फूटकर रोता है, मानो वह काले पानी भेजी जा रही हो।

जेनी-मैं तो इस तमाशे पर खूब हँसूँ ।

मनहर-हंसने की बात ही है।

जेनी - तुम्हारी बीवी भी रोई होगी ?

मनहर ----अजी, कुछ न पूछो, पछाड़े खा रही थी, मानो मैं उसका गला घोंट दूंँगा। मेरी पालको से निकलकर भागी जाती थी ; पर मैंने जोर से पकड़कर अपनी बगल में बैठा लिया । तब मुझे दाँत काटने दौड़ी।

मिस जेनी ने जोर से कहकहा मारा और मारे हँसी के लोट गई । बोली- हारिविल। हारिविल। क्या अब भी दांत काटती है ?

मनहर-वह अब इस संसार में नहीं है जेनी । मैं उससे खूब काम लेता था । मैं सोता था, तो वह मेरे बदन मे चप्पी लगाती थी, मेरे सिर में तेल डालती थी, पंखा झलती थी।

जेनी-मुझे तो विश्वास नहीं आता। बिलकुल मुर्ख थी।

मनहर--कुछ न पूछो । दिन को किसी के सामने मुझसे बोलती भी न थी; मगर मै उसका पीछा करता रहता था।

जेनी-ओ ! नाटी बाय । तुम बड़े शरीर हो । थी तो रूपवती ?

मनहर-हाँ, उसका मुंह तुम्हारे तलवों जैसा था।

जेनी-नाँनसेंस ! तुम ऐसी औरत के पीछे कभी न दौड़ते ।