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मानसरोवर


गये। और अब लार्ड बारवर और उनके पूर्वाधिकारी के व्यवहार में लेशमात्र भी अन्तर न था। वह भी वही कर रहे थे, जो उनके पहले लोग कर चुके। वही दमन था, वही जातिगत अभिमान, वही कट्टरता, वही सकीर्णता । देवता अधिकार के सिंहा- सन पर पाँव रखते ही अपना टेवत्व खो बैठा था। अपने दो साल के अधिकार-काल में उन्होंने सैकड़ों ही अफसर नियुक्त किये थे , पर उनमे एक भी हिन्दुस्तानी न था, भारतवासी निराश हो-होकर उन्हें 'डाइहार्ट और 'धन का उपासक' और 'साम्राज्य- वाद का पुजारी' कहने लगे थे। यह खुला हुआ रहस्य था कि जो कुछ करते थे, मि० कावर्ड करते थे। हक यह था कि लार्ड बारवर नीयत के इतने शेर थे , जितने दिल के कमजोर । हालांकि परिणाम दोनों दशाओ मे एक-सा था ।

यह मि० कावर्ड एक ही महापुरुष थे। उनकी उम्र चालीस से गुजर चुकी थी , पर अभी तक उन्होंने विवाह न किया था। शायद उनका खयाल था कि राजनीति के क्षेत्र में रहकर वैवाहिक जीवन का आनन्द नहीं उठा सकते । वास्तव में वह नवीनता के मधुप थे। उन्हें नित्य नये विनोद और आकर्षण, नित्य नये विलास और उल्लास को टोह रहती थी। दूसरों के लगाये हुए बाग की सैर करके चित्त को प्रसन्न कर लेना इससे कहीं सरल था कि अपना वाग्र आप लगायें और उसकी रक्षा और सजावट में अपना सिर खपायें। उनकी व्यावहारिक और व्यापारिक दृष्टि मे यह लटका उससे कहीं आसान था।

दोपहर का समय था। मि० कावर्ड नाश्ता करके सिगार पी रहे थे कि मिस जेनी रोज के आने की खबर हुई। उन्होने तुरन्त आईने के सामने खड़े होकर अपनो सूरत देखी, बिखरे हुए बालों को संवारा, बहुमूल्य इत्र मला और मुख से स्वागत को सहास छवि दरसाते हुए कमरे से निकलकर मिस रोज़ से हाथ मिलाया !

जेनी ने कमरे में कदम रखते ही कहा -- अब मैं समझ गई कि क्यो कोई सुन्दरी तुम्हारी बात नहीं पूछती । आप अपने वादों को पूरा करना नहीं जानते।

मि० कावर्ड ने जेनी के लिए एक कुरसी खींचते हुए कहा-मुझे बहुत खेद है मिस रोज, कि मैं कल अपना वादा पूरा न कर सका । प्राइवेट सेक्रेटरियों का जीवन कुत्तों के जीवन से भी हेय है । बार-बार चाहता था कि दफ्तर से उठू, पर एक-न- एक काम ऐसा आ जाता था कि फिर रुक जाना पड़ता था। मैं तुमसे क्षमा मांगता हूँ । वाल मे तुम्हें खूब आनन्द आया होगा।