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उन्माद

मनहर खोया हुआ-सा बोला---तुम कब आ गई बागी ? देखो, मैं कबसे तुम्हें पुकार रहा हूँ। चलो, आज सैर कर आये । वहीं नदी के किनारे तुम अपना वही प्यारा गीत सुनाना, जिसे सुनकर मै पागल हो जाता हूँ। क्या कहती हो, मैं बेमुरौवत हूँ ? यह तुम्हारा अन्याय है वागी मे कसम खाकर कहता है, ऐसा एक दिन भी नहीं गुजरा, जय तुम्हारी याद ने मुझे रुलाया न हो।

जेनी ने उसका कन्धा हिलाकर कहा--तुम यह क्या ऊल-जलूल बक रहे हो ? वागी यहाँ कहाँ है ?

मनहर ने उसकी ओर अपरिचित-भाव से देखकर कुछ कहा, फिर जोर से हंँसकर बोला - मै यह न मानूँगा बागी । तुम्हें मेरे साथ चलना होगा। वहाँ मैं तुम्हारे लिए फूलों की एक माला बनाऊँगा।

जेनी ने समझा, यह शराब बहुत पी गये हैं । बक-झक कर रहे हैं। इनसे इस वक्त कुछ बातें करना व्यर्थ है। चुपके से कमरे के बाहर चली गई। उसे जरा-सी शंका हुई थी । यहाँ उसका मूलोच्छेद हो गया। जिस आदमी का अपनी वाणी पर अधिकार नहीं, वह इच्छा पर क्या अधिकार रख सकता है।

उसी घड़ी से मनहर को घरवालो की रट-सी लग गई। कभी वागीश्वरी को पुकारता, कभी अम्माँ को, कभी दादा को । उसकी आत्मा अतीत में विचरती रहती, उस अतीत में जब जेनी ने काली छाया की भांति प्रवेश न किया था और वागीश्वरी अपने सरल व्रत से उसके जीवन में प्रकाश फैलाती रहती थी।

दूसरे दिन जेनी ने जाकर उससे कहा-तुस इतनी शराब क्यों पीते हो ? देखते नहीं, तुम्हारी क्या दशा हो रही है ?

मनहर ने उसकी ओर आश्चर्य से देखकर कहा-तुम कौन हो?

जेनी--क्या मुझे नहीं पहचानते है इतनी जल्द भूल गये ?

मनहर---मैंने तुम्हें कभी नहीं देखा । मैं तुम्हें नहीं पहचानता।

जेनी ने और अधिक बातचीत न की। उसने मनहर के कमरे के शराब की बोतलें उठवा ली और नौकरों को ताकीद कर दी कि उसे एक घूंट भी शराब न दो जाय । उसे अब कुछ-कुछ सन्देह होने लगा , क्योकि मनहर की दशा उससे कहीं शंकाजनक थी, जितनी वह समझती थी । मनहर का जीवित और स्वस्थ रहना