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उन्माद

'नहीं अम्मां, तुम चलो क्यो नहीं चलती।'

बूढी माता भाँति-भांति की शंकाएँ करती हुई कुएं पर पहुंची, तो मनहर दौड़कर उनके पैरो से चिमट गया। माता ने उसे छाती से लगाकर कहा-तुम्हारी यह क्या दशा है मानू ? क्या बीमार हो ? असबाब कहाँ है ?

मनहर ने कहा-पहले कुछ खाने को दो अम्मां। बहुत भूखा हूँ। मैं बड़ी दूर से पैदल चला आ रहा हूँ।

गाँव मे खबर फैल गई, मनहर आया है। लोग उसे देखने दौड़े। किस ठाट से आया है। बड़े ऊँचे पद पर है, हजारो रुपये पाता है। अब उसके ठाट का क्या पूछना । मेम भी साथ आई है या नहीं ?

मगर जब आकर देखा, तो आफत का मारा आदमी, फटे हालो, कपड़े तार तार, बाल बढे हुए, जैसे जेल से आया हो।

प्रश्नो को बौछार होने लगी---हमने तो सुना था, तुम किसी बड़े ऊँचे पद पर हो ?

मनहर ने जैसे किसी भूली बात को याद करने का विफल-प्रयास करके कहा- मैं । मैं तो किसी ओहदे पर नहीं हूँ।

'वाह ! तुम विलायत से मेम नहीं लाये थे ?'

मनहर ने चकित होकर कहा-विलायत ! विलायत कौन गया था ?

'अरे | भंग तो नहीं खा गये हो! तुम विलायत नहीं गये थे?'

मनहर मूढो की भांति हंसा-मैं विलायत क्या करने जाता?

अजी, तुमको वज़ीफा नहीं मिला था ? यहाँ से तुम विलायत गये। तुम्हारे पत्र वरावर आते थे। अब तुम कहते हो, मैं विलायत गया ही नहीं। होश में हो, या हम लोगों को उल्लू बना रहे हो?'

मनहर ने उन लोगों की ओर आँखें फाड़कर देखा और बोला-मैं तो कहीं नहीं गया । आप लोग जाने क्या कह रहे हैं।

अब इसमें सन्देह की गुंजाइश न रही कि वह अपने होश-हवास में नहीं है। उसे विलायत जाने के पहले की सारी बातें याद थीं। गाँव और घर के हरेक आदमी को पहचानता था, सबसे नम्रता और प्रेम से बातें करता था, लेकिन जब इंग्लैण्ड, अगरेज़ वीवी और ऊँचे पद का ज़िक्र आता तो भौचक्का होकर ताकने लगता। वागी-