पृष्ठ:मानसरोवर २.pdf/१२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२५
उन्माद


आखिर मैंने तुम्हारे साथ क्या बुराई की थी ? फिर मुझमे कोई बुराई देखी थी, तो तुम्हे चाहिए था, मुझे सावधान कर देते। छिपकर चले आने से क्या फायदा हुआ ? ऐसी अच्छी जगह मिल गई थी, वह भी हाथ से निकल गई।

मनहर काठ के उल्ल की भांति खड़ा रहा।

जेनी ने फिर कहा- तुम्हारे चले आने के बाद मेरे ऊपर जो संकट आये, वह सुनाऊँ तो तुम घवड़ा जाओगे । मैं इसी चिंता और दु:ख से बीमार हो गई । तुम्हारे बगैर मेरा जीवन निरर्थक हो गया है। तुम्हारा चित्र देखकर मन को ढाढस देती थी। तुम्हारे पत्रो को आदि से अन्त तक पढना मेरे लिए सबसे मनोरंजक विषय था। तुम मेरे माथ चलो। मैंने एक डाक्टर से बातचीत की है। वह मस्तिष्क के विकारों का डाँक्टर है । मुझे आशा है, उसके उपचार से तुम्हे लाभ होगा।

मनहर चुपचाप विरक्तभाव से खड़ा रहा, मानो वह न कुछ देख रहा है, न सुन रहा है।

सहसा वागीश्वरी निकल आई। जेनी को देखते ही वह ताड़ गई कि यही मेरी यूरोपियन सौत है। वह उसे बडे आदर-सत्कार के साथ भीतर ले गई। मनहर भी उनके पीछे-पीछे चला गया।

जेनी ने टूटी खाट पर बैठते हुए कहा---इन्होंने मेरा जिक्र तो तुमसे मिया ही होगा। मेरी इनसे लदन मे शादी हुई है।

वागोश्वरी बोली-यह तो मैं आपको देखते ही समझ गई थी।

जेनी- इन्होंने कभी मेरा जिक्र नहीं किया ?

वागीशरी-कभी नहीं। इन्हें तो कुछ याद ही नहीं ! आपको तो यहां आने में बड़ा कष्ट हुआ होगा ?

जेनी--महीनों के बाद तय इनके घर का पता चला। वहाँ से बिना कुछ कहे- सुने चल दिये।

'आपको कुछ मालूम है, इन्हें पया शिकायत है?'

'शराब बहुत पीने लगे थे । आपने किसी डाक्टर को नहीं दिखाया ?'

'हमने तो किसी को नहीं दिखाया।'

जेनी ने तिरस्कार करके कहा-क्यों ? क्या आप इन्हें हमेशा बीमार रखना चाहती हैं ?