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न्याय

हज़रत अगर यही मतलब हो, तो!

अ० आ०-तो कुछ नहीं। जैनब को अपने ख़ुदा और रसूल की बदगी मुबारक हो। मैं एक बार उससे मिलकर घर चला जाऊँगा, और फिर कभी आपको अपनी सूरत न दिखाऊँगा , लेकिन उस दशा मे अगर कुरैश-जाति आपसे लड़ने को तैयार हो जाय, तो उसका इलज़ाम मुझ पर न होगा ।

हज़रत-मैं कुरैश से इस वक्त नहीं लड़ना चाहता।

अ० आ०–तो जैनब को मेरे साथ जाने दीजिए। उस हालत मे कुरैश के क्रोध का भाजन मैं होऊँगा । आप और आपके मुरीदों पर कोई आफत न होगी।

हज़रत--तुम दवाव में आकर जैनब को खुदा की तरफ से फेरने का यत्न तो न करोगे ?

अ० आ०-मैं किसी के धर्म में बाधा डालना सर्वथा अमानुषोय समझता हूँ।

हज़रत-तुम्हे लोग जैनव को तलाक देने पर तो मज़बूर न करेंगे ?

अ० आo-मैं जैनब को तलाक देने के पहले जिन्दगी को तलाक दे दूंगा।

हजरत को अवुलआस की बातो से इतमीनान हो गया। वह आस की इज्जत करते थे। आस को हरम मे जैनव से मिलने का मौका दिया।

आस ने पूछा-जनब, मैं तुम्हे अपने साथ ले चलने आया है, धर्म के बदलने से कहीं मन तो नहीं बदल गया ?

जैनब रोती हुई उनके पैरो पर गिर पड़ी और बोली-या मेरे आका ! धर्म बार-बार मिलता है, हृदय केवल एक बार । मैं आपको हूँ, चाहे यहाँ रहूँ चाहे वहाँ , समाज मुझे आपकी सेवा में रहने देगा?

आस–यदि समाज न रहने देगा, तो मैं समाज ही से निकल जाऊँगा । दुनिया मे आराम से जीवन व्यतीत करने के लिए बहुत-से स्थान हैं। रहा मैं, तुम जानती हो, मै धार्मिक स्वाधीनता का पक्षपाती हूँ, मैं तुम्हारे धार्मिक विषयो मे कभी हस्त- क्षेप न करूंँगा।

जैनब चली, तो खुदैजा ने रोते हुए उसे यमन के लालो का एक बहुमूल्य हार विदाई में दिया ।

( ५ )

इस्लाम पर विधर्मियों के अत्याचार दिनों-दिन बढ़ने लगे। अवहेलना की दशा