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मानसरोवर


सेवक ; मगर आचरण ऐसे कि शोहदो का भी न होगा। देश का उद्धार ऐसे विला- सियों के हाथों नहीं हो सकता । उसके लिए सच्चा त्याग होना चाहिए ।

( २ )

यही आलोचनाएं हो रही थीं कि एक दूसरी देवी आई भगवती । बेचारी चन्दा मांगने गई थीं। थकी-मांँदी चली आ रही थीं। यहाँ जो पचायत देखो, तो रम गई। उनके साथ उनकी बालिका भी थी। कोई दस साल उम्र होगी। इन कामों मे बराबर माँ के साथ रहती थी। उसे जोर की भूख लगी हुई थी। घर की कुँजी भी भगवती देवी के पास थी। पतिदेव दफ्तर से आ गये होंगे। घर का खुलना भी जरूरी था ; इसलिए मैंने बालिका को उसके घर पहुंचाने की सेवा स्वीकार की।

कुछ दूर चलकर बालिका ने कहा-आपको मालूम है, महाराय 'ग' शराब पीते हैं ?

मैं इस आक्षेप का समर्थन न कर सका। भोली-भाली बालिका के हृदय में कटुता, द्वष और प्रपञ्च का विष बोना मेरी ईर्ष्यालु-प्रकृति को भी रुचिकर न जान पड़ा । जहाँ कोमलता और सारल्य, विश्वास और माधुर्य का राज्य होना चाहिए, वहांँ कुत्सा और क्षुद्रता का मर्यादित होना कौन पसन्द करेगा, देवता के गले में कांटों की माला कौन पहनायेगा?

मैंने पूछा--तुमसे किसने कहा कि महाशय 'ग' शराब पीते हैं ?

'वाह ! पीते ही हैं, आप क्या जाने ?'

'तुम्हे कैसे मालूम हुआ ?

'सारे शहर के लोग कह रहे हैं।'

'शहरवाले झूठ बोल रहे हैं।'

बालिका ने मेरी और अविश्वास की आँखो से देखा, शायद वह समझी, मैं भो महाशय 'ग' के भाई-बदों में हूँ।

'आप कह सकते हैं, महाशय 'ग' शराब नहीं पीते ?'

'हाँ, वह कभी शराब नहीं पीते।'

'और महाशय 'क' ने जनता के रुपये भी नहीं उड़ाये ?'

'यह भी असत्य है।'

'और महाशय 'ख' मोटर पर हवा खाने नहीं जाते ?'