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कुत्सा

'मोटर पर हवा खाना कोई अपराध नहीं है।'

'अपराध नहीं है राजाओं के लिए, रईसों के लिए, अफसरों के लिए, जो जनता का खून चूसते हैं । देश-भक्ति का दम भरनेवालो के लिए वह बहुत बड़ा अपराध है।'

'लेकिन यह तो सोचो, इन लोगों को कितना दौड़ना पड़ता है। पैदल कहाँ तक दौड़े

'पैरगाड़ी पर तो चल सकते हैं ? यह कुछ बात नहीं है। ये लोग शान दिखाना चाहते है, जिसमे लोग समझे, यह भी बहुत बड़े आदमी हैं। हमारी संस्था गरीबों की संस्था है। यहां मोटर पर उसी वक्त बैठना चाहिए, जब और किसी तरह काम ही न चल सके और शराबियों के लिए तो यहाँ स्थान ही न होना चाहिए। आप तो चंदे माँगने जाते नहीं । हमे कितना लज्जित होना पड़ता है, आपको क्या मालूम ?'

मैंने गंभीर होकर कहा--तुम्हें लोगों से कह देना चाहिए, यह सरासर गलत है। हम और तुम इस सस्था के शुभचिन्तक है। हमे अपने कार्यकर्ताओ का अप- मान करना उचित नहीं । हमें तो इतना ही देखना चाहिए कि वे हमारी कितनी सेवा करते है ।मैं यह नहीं कहता कि 'क, ख, ग में बुराइयां नहीं हैं । संसार में ऐसा कौन है, जिसमें बुराइयां न हों, लेकिन बुराइयों के मुकाबले मे उनमें गुण कितने हैं, यह तो देखो। हम सभी स्वार्थ पर जान देते है , मकान बनाते हैं, जायदाद खरीदते हैं। और कुछ नहीं, तो आराम से घर मे सोते है। ये बेचारे चौबीसो घटे देश-हित की फिक्र में डूबे रहते है। तीनों ही साल साल-भर की सज़ा काटकर, कई महीने हुए लौटे है। तीनो ही के उद्योग से अस्पताल और पुस्तकालय खुले, इन्हीं वीरो ने आंदो- लन करके किसानों का लगान कम कराया ; अगर इन्हे शराब पीना और धन कमाना होता, तो इस क्षेत्र में आते ही क्यो ?

बालिका ने विचारपूर्ण दृष्टि से मुझे देखा। फिर बोली-यह बतलाइए, महाशय 'ग' शराब पीते हैं या नहीं?

मैंने निश्चय-पूर्वक कहा-नहीं ! जो यह कहता है, वह झूठ बोलता है।

भगवती देवी का मकान आ गया । बालिका चली गई। मैं आज झूठ बोलकर जितना प्रसन्न था, उतना कभी सच बोलकर भी न हुआ था। मैंने एक बालिका के निर्मल हृदय को कुत्सा के पक मे गिरने से बचा लिया था।

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