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दो बैलों की कथा

'क्या करना चाहते हो ?'

'एकाध को सींगो पर उठाकर फेंक दूंगा।'

'लेकिन जानते हो वह प्यारी लड़की, जो हमें रोटियां खिलाती है, उसी की लड़की है, जो इस घर का मालिक है । वह बेचारी अनाथ न हो जायगी !'

'तो मालकिन को न फेंक दूं ? वही तो उस लड़की को मारती है।'

'लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूले जाते हो।'

'तुम तो किसी तरह निकलने ही नहीं देते। तो आओ, आज तुड़ाकर भाग चलें।’

'हाँ, यह मैं स्वीकार करता हूँ , लेकिन इतनी मोटी रस्सी टूटेगी कैसे ।'

'इसका उपाय है। पहले रस्मी को थोड़ा सा चबा लो। फिर एक झटके में जाती है।'

रात को जब बालिका रोटियाँ खिलाकर चली गई, तो दोनो रस्सियां चबाने लगे , पर मोटी रस्सी मुंह में न आती थी। बेचारे बार-बार जोर लगाकर रह जाते थे।

सहसा घर का द्वार खुला, और वही लड़की निकली । दोनो सिर झुकाकर उसका हाथ चाटने लगे। दोनो को पूंँछे खड़ी हो गई । उसने उनके माथे सहलाये और बोली-खोले देती हूँ। चुपके से भाग जाओ, नहीं यहाँ लोग मार डालेंगे। आज घर से सलाह हो रही है कि इनकी नाको में नाय डाल दी जाय।

उसने गरांँव खोल दिया , पर दोनो चुपचाप खड़े रहे।

मोती ने अपनी भाषा मे पूछा --- अब चलते क्यों नहीं ?

हीरा ने कहा-चलें तो , लेकिन कल इस अनाथ पर आफत आयेगी । सब इसी पर सन्देह करेंगे। सहसा बालिका चिलाई-दोनों फूफायाले बैल भागे जा रहे हैं । ओ दादा ! दादा ! दोनों बैल भागे जा रहे है ! जल्दी दौड़ो !

गया हड़बड़ाकर भीतर से निकला और बैलों को पकड़ने चला । वह दोनों भागे । गया ने पीछा किया। वह और भी तेज हुए। गया ने शोर मचाया। फिर गाँव के कुछ आदमियों को साथ लेने के लिए लौटा। दोनों मित्रों को भागने का मौका मिल गया। सौधे दौड़ते चले गये। यहां तक कि मार्ग का ज्ञान न रहा। जिस परिचित