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मानसरोवर


मार्ग से आये थे, उसका यहाँ पता न था । नये-नये गाँव मिलने लगे। तब दोनों एक खेत के किनारे खड़े होकर सोचने लगे, अब क्या करना चाहिए।

हीरा ने कहा-मालूम होता है, राह भूल गये।

'तुम भी तो बेतहाशा भागे। वहीं उसे मार गिराना था।'

'उसे मार गिराते, तो दुनिया क्या कहती है वह अपना धर्म छोड़ दे; लेकिन हम अपना धर्म क्यों छोडे?

दोनो भूख से व्याकुल हो रहे थे। खेत मे मटर खड़ी थी। चरने लगे। रह- रहकर आहट ले लेते थे, कोई आता तो नहीं है।

जब पेट भर गया, दोनों ने आजादी का अनुभव किया, तो मस्त होकर उछलने- कूदने लगे। पहले दोनों ने डकार ली। फिर सींग मिलाये, और एक दूसरे को ठेलने लगे। मोती ने हीरा को कई कदम पीछे हटा दिया, यहाँ तक कि वह खाई में गिर गया । तब उसे भी क्रोध आया । संँभलकर उठा और फिर मोती से भिड़ गया । मोती ने देखा-खेल में झगड़ा हुआ चाहता है, तो किनारे हट गया।

( ४ )

अरे । यह क्या ! कोई साँड़ डौंकता चला आ रहा है। हाँ साँड़ ही है। वह सामने आ पहुँचा। दोनों मित्र चगले झांक रहे थे। साँड़ पूरा हाथी है। उससे भिड़ना जान से हाथ धोना है, लेकिन न भिड़ने पर भी तो जान बचती नहीं नजर आती। इन्हीं की तरफ आ भी रहा है । कितनी भयंकर सूरत है ?

मोती ने मूक भाषा में कहा-बुरे फंसे । जान कैसे बचेगी। कोई उपाय सोचो।

हरी ने चितिन स्वर में कहा- अपने घमंड में भूला हुआ है। आरजू-विनती न सुनेगा।

'भाग क्यों न चलें!

'भागला कायरता है।'

'तो फिर यहीं मरो । बन्दा तो नौ-दो ग्यारह होता है।'

'ओर जो दौड़ाये?'

'तो फिर कोई उपाय सोचो जत्द ।'

'उपाय यही है कि उस पर दोनों जने एक साथ चोट करें। मैं आगे से रगेदता हूँ, तुम पीछे से रगेदो, दोहरी मार पड़ेगी तो भाग खड़ा होगा। ज्योही मेरी ओर