पृष्ठ:मानसरोवर २.pdf/१५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४९
दो बैलों की कथा


झपटे, तुम बगल से उसके पेट में सींग घुसेड़ देना। जान जोखिम है, पर दूसरा उपाय नहीं है।'

दोनों मित्र जान हथेलियों पर लेकर लपके। साड़ को कभी सगठित शत्रुओ से लड़ने का तजरबा न था। वह तो एक शत्रु से मल्लयुद्ध करने का आदी था। ज्योंही होरा पर झपटा, मोती ने पीछे से दौड़ाया। साँड़ उसकी तरफ मुड़ा, तो हीरा ने रगेदा। सांड चाहता था कि एक एक करके दोनों को गिरा लें, पर यह दोनों भी उस्ताद थे। उसे यह अवसर न देते थे। एक बार साँड़ झल्लाकर हीरा का अन्त कर देने के लिए चला, कि मोती ने बगल से आकर उसके पेट में सींग भोंक दी। सांड क्रोध में आकर पीछे फिरा, तो होरा ने दूसरे पहलू में सींग चुभा दिया। आखिर बेचारा जख्मी होकर भागा, और दोनों मित्रो ने दूर तक उसका पीछा किया। यहाँ तक कि सांड़ वेदम होकर गिर पड़ा। तब दोनों ने उसे छोड़ दिया।

दोनों मित्र विजय के नशे में घूमते चले जाते थे।

मोती ने अपनी सांकेतिक भाषा में कहा-मेरा जी तो चाहता था कि बचा को मार ही डालूँ।

हीरा ने तिरस्कार किया--गिरे हुए वैरी पर सींग न चलाना चाहिए।

'यह सब ढोंग है । वैरी को ऐसा मारना चाहिए कि फिर न उठे।'

'अब घर कैसे पहुंचेंगे, यह सोचो ।'

'पहले कुछ खा लें, तो सोचें ।'

सामने मटर का खेत था ही। मोती उसमें घुस गया। हीरा मना करता रहा ; पर उसने एक न सुनी । अभी दो ही चार ग्रास खाये थे कि दो आदमी लाठियाँ लिये दौड़ पड़े, ओर दोनो मित्रों को घेर लिया। हीरा तो मेड़ पर था, निकल गया । मोती सींचे हुए खेत में था। उसके खुर कीचड़ में धँसने लगे। न भाग सका । पकड़ लिया गया । हीरा ने देखा, सगी संकट में है, तो लौट पड़ा। फंसेंगे तो दोनों साथ फंसेंगे । रखवालों ने उसे भी पकड़ लिया।

प्रात काल दोनों मित्र काजीहौस मे चन्द कर दिये गये।

( ५ )

दोनों मित्रों को जीवन में पहली बार ऐसा साबका पड़ा कि सारा दिन बीत गया और खाने को एक तिनका भी न मिला । समझ ही में न आता था, यह कैसा स्वामी

१०