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मानसरोवर

यह कहते हुए माती ने दोनों गधों को सींगों से मार-मारकर बाड़े के बाहर निकाला और तब अपने बन्धु के पास आकर सो रहा ।

भोर होते ही मुंशी और चौकीदार और अन्य कर्मचारियों मे कैसी खलबली मची, इसके लिखने की ज़रूरत नहीं । बस, इतना ही काफी है कि मोती की खूब मरम्मत हुई और उसे भी मोटी रस्सी से बांध दिया गया।

( ६ )

'एक सप्ताह तक दोनों मित्र वहाँ बॅधे पड़े रहे। किसीने चारे का एक तृण भी न डाला। हाँ, एक बार पानी दिखा दिया जाता था। यही उनका आधार था। दोनों इतने दुर्बल हो गये थे कि उठा तक न जाता था । ठठरियाँ निकल आई थी।

एक दिन बाढे के सामने डुग्गी बजने लगी और दोपहर होते-होते वहाँ पचास- साठ आदमी जमा हो गये। तब दोनो मित्र निकाले गये और उनकी देख-भाल होने लगी, लोग आ-आकर उनकी सूरत देखते और मन फीका करके चले जाते। ऐसे मृतक बैलों का कौन खरीदार होता ।

सहसा एक दढियल आदमी, जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा अत्यन्त कठोर, आया और दोनों मित्रों के कूल्हों मे उंँगली गोदकर मुंशीजी से बातें करने लगा। उसका चेहरा देखकर अन्तर्ज्ञान से दोनों मित्रो के दिल काँप उठे। वह कौन है और उन्हे क्यों टटोल रहा है, इस विषय में उन्हे कोई सन्देह न हुआ। दोनों ने एक दूसरे को भीत नेत्रों से देखा, और सिर झुका लिया।,

हीरा ने कहा---गया के घर से नाहक भागे । अब जान न बचेगी।

मोती ने अश्रद्धा के भाव से उत्तर दिया-कहते हैं, भगवान् सबके ऊपर दया करते हैं। उन्हें हमारे ऊपर क्यों दया नहीं आती ?

भगवान के लिए हमारा मरना-जीना दोनों बराबर है। चलो, अच्छा ही है, कुछ दिन उनके पास तो रहेगे? एक वार भगवान् ने उस लड़की के रूप में हमे बचाया था। क्या अब न बचायेंगे?

'यह आदमी छुरी चलायेगा । देख लेना।'

'तो क्या चिंता है। मास, खाल, सींग, हड्डी सब किसी-न-किसी काम आ जायँगी।

नीलाम हो जाने के बाद दोनों मित्र उस दढियल के साथ चले। दोनों की वोटी-