पृष्ठ:मानसरोवर २.pdf/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५४
मानसरोवर

'जाकर थाने में रपट कर दूँगा।'

'मेरे बैल हैं। इसका सबूत यह है कि मेरे द्वार पर खड़े हैं।'

दढियल झल्लाकर बेलों को जबरदस्ती पकड़ ले जाने के लिए बढा। उसी वक्त मोती ने सींग चलाया । दढियल पीछे हटा । मोती ने पीछा किया । दढियल भागा। मोती पीछे दौड़ा। गाँव के बाहर निकल जाने पर वह रुका , पर खड़ा दढियल का रास्ता देख रहा था । दढियल दूर खड़ा धमकियां दे रहा था, गालियाँ निकाल रहा था, पत्थर फेंक रहा था । और मोती विजयी शूर की भांति उसका रास्ता रोके खड़ा था। गाँव के लोग यह तमाशा देखते थे, और हॅसते थे।

जब दढ़ियल हारकर चला गया, तो मोती अकड़ता हुआ लौटा।

हीरा ने कहा- मैं डर रहा था कि कही तुम गुस्से में आकर मार न बैठो।

'अगर वह मुझे पकड़ता, तो वे मारे न छोड़ता।'

'अब न आयेगा ?'

'आयेगा तो दूर ही से खबर लूंँगा। देखू कैसे ले जाता है।'

'जो गोली मरवा दे ?'

'मर जाऊँगा ; पर उसके काम तो न आऊँगा।'

'हमारी जान को कोई जान ही नहीं समझता।'

'इसी लिए कि हम इतने सीधे होते हैं।'

ज़रा देर में नांदों में खली, भूसा, चोकर, दाना भर दिया गया और दोनों मित्र खाने लगे। झरी खड़ा दोनों को सहला रहा था और बीसो लड़के तमाशा देख रहे थे। सारे गाँव में उछाह-सा मालूम होता था।

उसी समय मालकिन ने आकर दोनो के माथे चूम लिये।


_____