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मानसरोवर

'आप बुरा मान जायेंगे।

'क्या तुम समझते हो, मैं वारुद का ढेर हूँ!

‘बेहतर है, आप इसे न पूछे।'

तुम्हें बतलाना पड़ेगा।'

और आप-ही-आप उनकी मुट्ठियाँ बॅध गईं।

'तुम्हे बतलाना पड़ेगा, इसी वक्त!

जयकृष्ण यह धौंस क्यों सहने लगा। क्रिकेट के मैदान में राजकुमारों पर रोव जमाया करता था, बड़े-बड़े हुक्काम की चुटकियाँ लेता था। बोला --अभी आपके दिल में पोलिटिकल एजेन्ट का कुछ भय है, आप प्रजा पर जुल्म करते डरते हैं । जब वह आपके एहसानो से देव जायगा, आप स्वच्छन्द हो जायेंगे। और प्रजा की फरियाद सुननेवाला कोई न रहेगा।

राजा साहब प्रज्वलित नेत्रों से ताकते हुए बोले--में एजेण्ट का गुलाम नहीं हूँ कि उससे डरूँ, कोई कारण नहीं है कि मैं उससे डरूँ, विलकुल कारण नहीं है। मैं पोलिटिकल एजेण्ट की इसी लिए खातिर करता हूँ कि वह हिज मैजेस्टी का प्रति- निधि है। मेरे और हिज़ मैजेस्टो के बीच में भाईचारा है, एजेन्ट केवल उनका दूत है। मैं केवल नीति का पालन कर रहा हूँ। मैं विलायत जाऊँ, तो हिज मैजेस्टी भी इसी तरह मेरा सत्कार करेंगे ! मैं डरूँ क्यो ? मैं अपने राज्य का स्वतन्त्र राजा हूँ। जिसे चाहूँ, फाँसी दे सकता हूँ। मैं किसीसे क्यों डरने लगा ? डरना नामर्दो का काम है, मैं ईश्वर से भी नहीं डरता। डर क्या वस्तु है, यह मैंने आज तक नहीं जाना । मैं तुम्हारी तरह कालेज का मुंहफट छात्र नहीं हूँ कि क्रान्ति और आजादी की हाँक लगाता फिरूँ। तुम क्या जानो, क्रान्ति क्या चीज़ है ? तुमने केवल उसका नाम सुन लिया है । उसके लाल दृश्य आँखों से नहीं देखे । बन्दूक की आवाज़ सुनकर तुम्हारा दिल काँप उठेगा।, क्या तुम चाहते हो, मैं एजेण्ट से कहूँ-प्रजा तबाह है, आपके आने की ज़रूरत नहीं। मैं इतना आतिथ्य-शून्य नहीं हूँ। मैं अन्धा नहीं हूँ, अहमक नहीं हूँ। प्रजा की दशा का मुझे तुमसे वहीं अधिक ज्ञान है, तुमने उसे बाहर से देखा है, मैं उसे नित्य भीतर से देखता हूँ। तुम मेरी प्रजा को क्रान्ति का स्वप्न दिखाकर उसे गुमराह नहीं कर सकते। तुम मेरे राज्य में विद्रोह और असंतोष के बीज नहीं