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मानसरोवर


बदमाश ! मैं नहीं चाहता कि ऐसा खतरनाक आदमी एक क्षण भी रियासत में रहे। तुम उससे जाकर कहो, इसी वक्त यहाँ से चला जाय; वरना उसके हक़ में अच्छा न होगा। मैं केवल आपकी मुरौवत से गम खा गया, नहीं इसी वक्त उसे इसका मज़ा चखा सकता था। केवल आपकी मुरौवत ने हाथ पकड़ लिया। आपको तुरन्त निर्णय करना पड़ेगा, इस रियासत की दीवानी, या लड़का । अगर दीवानी चाहते हो, तो तुरन्त उसे रियासत से निकाल दो और कह दो कि फिर कभी मेरी रियासत मे पाँव न रखे। लड़के से प्रेम है, तो आज हो रियासत से निकल जाइए । आप यहाँ से कोई चीज नहीं ले जा सकते, एक पाई की भी चीज़ नहीं । जो कुछ है, वह रियासत की है । बोलिए, क्या मजूर है ?

मि. मेहता ने क्रोध के आवेश में जयकृष्ण को डॉट तो बतलाई थी, पर यह न समझे थे कि मामला इतना तूल खींचेगा। एक क्षण के लिए वह सन्नाटे में आ गये। सिर झुकाकर परिस्थिति पर विचार करने लगे-राजा उन्हें मिट्टी में मिला सकता है। वह यहाँ बिलकुल बेकस हैं, कोई उनका साथी नहीं, कोई उनको फरियाद सुननेवाला नहीं । राजा उन्हे भिखारी छोड़ देगा । इस अपमान के साथ निकाले जाने की कल्पना करके, वह काँप उठे। रियासत में उनके बैरियो की कमी न थी। सब-के- सब मूसलों ढोल बजायेंगे । जो आज उनके सामने भीगी बिल्ली बने हुए हैं, कल शेरों की तरह गुर्रायगे । फिर इस उमर अब उन्हे नौकर ही कौन रखेगा । निर्दयी संसार के सामने क्या फिर उन्हें हाथ फैलाना पड़ेगा ? नहीं, इससे तो यह कहीं अच्छा है कि वह यहीं पड़े रहे। कम्पित स्वर मे बोले-मैं आज ही उसे घर से निकाल देता हूँ, अन्नदाता !

'आज नहीं, इसी वक्त!

'इसी वक्त निकाल दूंगा।'

'हमेशा के लिए।'

'हमेशा के लिए।

'अच्छी बात है जाइए, और आध घटे के अन्दर मुझे सूचना दीजिए।'

मि० मेहता घर चले, तो मारे क्रोध के उनके पाँव कांप रहे थे। देह में आग- -सी लगी हुई थी । इस लौंडे के कारण आज उन्हे कितना अपमान सहना पड़ा । गधा चला है यहां अपने साम्यवाद का राग अलापने । अब बचा को मालूम होगा, ज़बान