आपका सम्मान नहीं कर रहे हैं, अपनी भक्ति का परिचय दे रहे हैं। थोड़े दिनो में
न हम रहेंगे, न आप रहेगे, उस वक्त भी यह प्रतिमा अपनी मूक वाणो से कहती
रहेगी कि पिछले लोग अपने उद्धारकों का आदर करना जानते थे। मैंने लोगो से
कह दिया है कि चन्दा जमा करें । एजेण्ट ने अबकी जो पत्र लिखा है, उसमें आपको
खास तौर से सलाम लिखा है।
मेहता ने जमीन मे गड़कर कहा--यह उनकी उदारता है, मैं तो जैसा आपका सेवक हूँ, वैसा उनका भी सेवक हूँ।
राजा साहब कई मिनट तक फूलो को वहार देखते रहे । फिर इस तरह बोले, मानो कोई भूली हुई बात याद आ गई हो-- तहसील स्वास में एक गांव लगनपुर है, आप कभी वहाँ गये हैं ?
'हाँ अन्नदाता, एक बार गया हूँ, वहाँ एक धनी साहूकार है। उसीके दीवान- खाने मे ठहरा था। अच्छा आदमी है।'
'हाँ, ऊपर से बहुत अच्छा आदमी है , लेकिन अन्दर से पक्का पिशाच । आपको
शायद मालूम न हो, इधर कुछ दिनो से महारानी का स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया है।
और मैं सोच रहा हूँ कि उन्हें किसी सैनेटोरियम मे भेज दूं। वहाँ सब तरह की
चिन्ताओं-झंझटो से मुक्त होकर वह आराम से रह सकेंगी लेकिन रनिवास में एक
नारी का रहना लाजिम है। अफसरों के साथ उनकी लेडियां भी आती है,
और भी कितने अंग्रेज मित्र अपनी लेडियो के साथ मेरे मेहमान होते
रहते हैं। कभी राजे-महाराजे भी रानियो के साथ आ जाते हैं। रानी के
वगर लेडियो का आदर-सत्कार कौन करेगा ? मेरे लिए यह वैयक्तिक प्रश्न नहीं,
राजनैतिक समस्या है, और शायद आप भी मुझसे सहमत होगे,
इसलिए
मैंने दूसरी शादी करने का इरादा कर लिया है। इस साहूकार की एक लड़की है,
जो कुछ दिनो अजमेर में शिक्षा पा चुकी है। मैं एक बार उस गाँव से होकर निकला,
तो मैंने उसे अपने घर की छत पर खड़े देखा। मेरे मन में तुरन्त भावना उठी कि
अगर यह रमणी रनिवास मे आ जाय तो रनिवास की शोभा बढ़ जाय । मैंने महारानी
की अनुमति लेकर साहूकार के पास सदेशा भेजा , किन्तु मेरे द्रोहियों ने उसे कुछ ऐसी
पट्टी पढा दी कि उसने मेरा संदेशा स्वीकार न किया। कहता है, कन्या का विवाह हो
चुका है। मैंने कहला भेजा, इसमें कोई हानि नहीं, मैं तावान देने को तैयार हूँ,