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मुफ्त का यश


के इजलास में है और मुहम्मद खलील और दारोगाजी की दाँत-काटी रोटी है । अवश्य सजा हो जायगी। अब तुम्ही बचाओ, तो उसकी जान बच सकती है। और कोई आशा नहीं। सज़ा तो जो होगी वह होगी ही, इज्जत भी खाक में मिल जायगी। तुम जाकर हाकिम-जिला से इतना कह दो कि मुकदमा झूठा है, आप खुद चलकर तहकीकात कर लें। बस देखो भाई, वचपन के साथी हो, नाहीं न करना। जानता हूँ, तुम इन मुआमलों में नहीं पड़ते और तुम्हारे-जैसे आदमी को पढ़ना भी न चाहिए । तुम प्रजा की लड़ाई लड़नेवाले जीव हो, तुम्हें सरकार के आदमियों से मेल- जोल बढाना उचित नहीं। नहीं जनता की नज़रों से गिर जाओगे, लेकिन यह घर का मुआमला है। इतना समझ लो ; अगर बिलकुल झूठा न होता, तो मैं कभी तुम्हारे पास न आता ! लड़के की माँ रो-रोकर जान दिये डालती है, बहू ने दाना-पानी छोड़ रखा है। सात दिन से घर में चूल्हा नहीं जला। मैं तो थोड़ा-सा दूध पी लेता हूँ, लेकिन दोनों सास-बहू तो निराहार पड़ी हुई हैं। अगर बच्चा को सज़ा हो गई, तो दोनों मर जायेंगी। मैंने यही कहकर उन्हे ढाढस दिया है कि जब तक हमारा छोटा भाई सलामत्त है, कोई हमारा बाल बांका नहीं कर सकता। तुम्हारी भाभी ने तुम्हारी एक पुस्तक पढी है । वह तो तुम्हें देव-तुल्य समझती है, और जब कोई बात होती है तो तुम्हारी नजीर देकर मुझे लज्जित करती रहती है। मैं भी साफ कह देता हूँ-~~मैं उस छोकरे को-सौ बुद्धि कहाँ से लाऊँ। तुम्हे उसकी नज़रो से गिराने के लिए तुम्हें छोकरा, मरियल सभी कुछ कहता है , पर तुम्हारे सामने मेरा रंग नहीं जमता।

मैं बड़े संकट में पड़ गया। मेरी ओर से जितनी आपत्तियां हो सकती थीं, उन सबका जवाब बलदेवसिह ने पहले ही से दे दिया था । उनको फिर से दुहराना व्यर्थ था। इसके सिवा कोई भी जवाब न सूझा कि मैं जाकर साहब से कहूँगा। हाँ, इतना मैंने अपनी तरफ से और वढा दिया कि मुझे आशा नहीं कि मेरे कहने का विशेष खयाल किया जाय , क्योंकि सरकारी मुआमलों में हुक्काम हमेशा अपने मातहतो का पक्ष लिया करते हैं।

बलदेवसिंह ने प्रसन्न होकर कहा---इसकी चिन्ता नहीं, तकदीर में जो लिखा है, वह तो होगा ही , बस तुम जाकर कह-भर दो।

'अच्छी बात है।'