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बालक

गंगू को लोग ब्राह्मण कहते हैं और वह अपने को ब्राह्मण समझता भी है। मेरे सईस और खिदमतगार मुझे दूर से सलाम करते है। गंगू मुझे कभी सलाम नहीं करता। वह शायद मुझसे पालागन की आशा रखता है। मेरा जूठा गिलास कभी हाथ से नहीं छूता, ओर न मेरी कभी इतनी हिम्मत हुई कि उससे पंखा झलने को कहूँ। जब मैं पसीने से तर होता हूँ और वहाँ कोई दूसरा आदमी नहीं होता, तो गंगू आप-ही-आप पंखा उठा लेता है। लेकिन उसकी मुद्रा से यह भाव स्पष्ट प्रकट होता है कि मुझ पर कोई एहसान कर रहा है और मैं भी न-जाने क्यों फौरन ही उसके हाथ से पखा छीन लेता हूँ। उग्र स्वभाव का मनुष्य है। किसी की बात नहीं सह सकता। ऐसे बहुत कम आदमी होंगे, जिनसे उसकी मित्रता हो , पर सईस और खिदमतगार के साथ बैठना शायद वह अपमानजनक समझता है। मैंने उसे किसीसे मिलते-जुलते नहीं देखा। आश्चर्य यह है कि उसे भंग-बूटी से प्रेम नहीं, जो इस श्रेणी के मनुष्यों में एक असाधारण गुण है। मैंने उसे कभी पूजा पाठ करते या नदी मे स्नान करने जाते नहीं देखा। विलकुल निरक्षर है , लेकिन फिर भी वह ब्राह्मण है और चाहता है कि दुनिया उसको प्रतिष्ठा और सेवा करे और क्यो न चाहे ? जब पुरुषाओ को पैदा की हुई सम्पत्ति पर आज भी लोग अधिकार जमाये हुए हैं और उसी शान से, मानो खुद पैदा की हो, तो वह क्यो उस प्रतिष्ठा और सम्मान को त्याग दे, जो उसके पुरुषाओं ने संचय किया था ? यह उसकी बपौती है।

मेरा स्वभाव कुछ इस तरह का है कि अपने नौकरों से बहुत कम बोलता हूँ। में चाहता हूँ, जब तक मैं खुद न वुलाऊँ, कोई मेरे पास न आये। मुझे यह अच्छा नहीं लगता कि जरा सी बातों के लिए नौकरों को आवाज देता फिरूँ। मुझे अपने हाथ से सुराही से पानी उँडेल लेना, या अपना लैम्प जला लेना, या अपने जूते पहन लेना, या आलमारी से कोई किताब निकाल लेना, इससे कहीं ज्यादा मरल मालूम होता