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जीवन का शाप

शीरी ने गिला करते हुए कहा-आपकी राह देखते-देखते आँखें थक गई । आप भी ज़बानी हमदर्दी ही करना जानते हैं। आपको क्या खबर, इन कई दिनों मे मेरी आँखों से आंसू बहे हैं।

कावसजी ने शीरी बानू को उत्कण्ठापूर्ण मुद्रा देखी, जो बहुमूल्य रेशमी साड़ी की आब से और भी दमक उठी थी, और उनका हृदय अदर से बैठता हुआ जान पड़ा। उस छात्र की-सी दशा हुई, जो आज अन्तिम परीक्षा पास कर चुका हो और जीवन का प्रश्न उसके सामने अपने भयंकर रूप में खड़ा हो। काश वह कुछ दिन और परीक्षाओं को भूल-भुलैया मे जीवन के स्वप्नों का आनन्द ले सकता। उस स्वप्न के सामने यह सत्य कितना डरावना था । अभी तक कावसजी ने मधुमक्खी का शहद ही चखा था। इस समय वह उनके मुख पर मॅडरा रही थी और वह डर रहे थे , कहाँ डक न मारे।

दवी हुई आवाज से बोले- मुझे यह सुनकर बड़ा दुख हुआ। मैने तो शापूर को बहुत समझाया था।

शीरी ने उनका हाथ पकड़कर एक बेंच पर विठा दिया और बोली-उन पर अब समझाने-बुझाने का कोई असर न होगा। और मुझे ही क्या गरज़ पङी है कि मै उनके पांव सहलाती रहूँ। आज मैंने निश्चय कर लिया है, अब उस घर में लौट- कर न जाऊँगी , अगर उन्हें अदालत में ज़लील होने का शौक है, तो मुझ पर दावा करें, मै तैयार हूँ। मै जिसके साथ नहीं रहना चाहती, उसके साथ रहने के लिए ईश्वर भी मुझे मज़बूर नहीं कर सकता, अदालत क्या कर सकती है ? अगर तुम मुझे आश्रय दे सकते हो, तो मैं तुम्हारी बनकर रहूँगी, जब तक तुम मेरे रहोगे। अगर तुममे इतना आत्मबल नहीं है, तो मेरे लिए दूसरे द्वार खुल जायेंगे। अब साफ-साफ बतलाओ, क्या वह सारी सहानुभूति ज़बानी थी ?

कावसजी ने कलेजा मजबूत करके कहा----नहीं-नहीं, शीरी, खुदा जानता है,

मुझे तुमसे कितना प्रेम है । तुम्हारे लिए मेरे हृदय में स्थान है।

'मगर गुलशन को क्या करोगे?'

'उसे तलाक दे दूंगा।'

'हाँ, यही मैं भी चाहती हूँ। तो मैं तुम्हारे साथ चलूगी, अभी, इसी दम । शापूर से अब मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है।'