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मानसरोवर

'भूठ बोलने के लिए बड़ी अक्ल को जरूरत होती है प्यारे, और वह तुममे नहीं है ! समझे ? चुपके से जाकर शीरी वानू को सलाम करो और कहो कि आराम से अपने घर में बैठे। सुख कभी सम्पूर्ण नहीं मिलता। विधि इतना घोर पक्षपात नहीं कर सकता । गुलाब मे कांटे होते ही हैं। अगर सुख भोगना है तो उसे उसके दोषों के साथ भोगना पड़ेगा। अभी विज्ञान ने कोई ऐसा उपाय नहीं निकाला कि हम सुख के काँटों को अलग कर सके। मुफ्त का माल उड़ानेवालों को ऐयाशी के सिवा और क्या सूझेगी ? धन अगर सारी दुनिया का विलास न मोल लेना चाहे तो वह धन ही कैसा ? शीरी के लिए भी क्या वह द्वार नहीं खुले हैं, जो शापूरजी के लिए खुले हैं ? उससे कहो-शापूर के घर में रहे, उनके धन को भोगे और भूल जाय कि वह शापूर की स्त्री है, उसी तरह जैसे शापूर भूल गया है कि वह शीरी का पति है। जलना और कुढना छोड़कर विलास का आनन्द लूटे । उसका धन एक-से-एक रुपवान् विद्वान् नवयुवकों को खींच लायेगा। तुमने ही एक बार मुझसे कहा था कि एक जमाने मे फ्रान्स में धनवान् विलासिनी महिलाओ का समाज पर आधिपत्य था। उनके पति सब कुछ देखते थे और मुंह खोलने का साहस न करते थे। और मुंह क्या खोलते। वे खुद इसी धुन में मस्त थे । यही धन का प्रसाद है । तुमसे न बने, तो चलो, मैं शीरी को समझा दूं। ऐयाश मर्द की स्त्री अगर ऐयाश न हो, तो उसकी कायरता है-- लतखोरपन है ।'

कावसजी ने चकित होकर कहा लेकिन तुम भी तो धन की उपासक हो ?

गुलशन ने शर्मिन्दा होकर कहा-यही तो जीवन का शाप है। हम उसी चीज़ पर लपकते हैं, जिसमें हमारा अमगल है, सत्यानाश है। मैं बहुत दिनों पापा के इलाके मे रही हूँ। चारों तरफ किसान और मंजूर रहते थे। वेचारे दिन-भर पसीना बहाते थे, शाम को घर जाते थे। ऐयाशी और बदमाशी का कहीं नाम न था। और यहाँ शहर मे देखती हूँ कि सभी बड़े घरो मे यही रोना है। सब-के-सब हथकडों से पैसे कमाते हैं और अस्वाभाविक जीवन बिताते हैं। आज तुम्हें कहीं से धन मिल जाय, तो तुम शापूर बन जाओगे, निश्चय ।

'तब शायद तुम भी अपने बताये हुए मार्ग पर चलोगी, क्यो ?'

'शायद नहीं, अवश्य ।

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